लक्ष्मी की लाठी -Laxmi's Stick

बगही बिहार के बक्सर जिले में एक छोटा सा गाँव है।  उसी बगही में मैं रहती  हूँ।  मेरे पड़ोस में लक्ष्मी अपने पति बिहारी राम के साथ रहती है।  उसकी दो बेटी है मीना और चिंता।  एक बेटा है विनोद।  लक्ष्मी गरीब तो है, लेकिन उसे खाने-पीने की दिक्कत नहीं थी।  बच्चे थे उसका सहारा, उसकी लाठी।  

लक्ष्मी और बिहारी ने विनोद और बड़ी बेटी मीना की शादी कर दी थी।  ऐसे समय गुजर रहा था।  तभी  2018 में बिहारी राम को लकवा मार दिया।  उस समय मीना और उसके पति श्याम ने बिहारी का  दवा-दारु करवाया था। उसके लिए गाँव से 18 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। ऑटो करके वे बिहारी को ले जाते-लाते थे। फिर मीना और श्याम अपने घर लौट गए। 

लक्ष्मी बिहारी की देखभाल करती थी। खेतों में रोपाई-बुवाई, कटाई-पिटाई करके  दवा के लिए पैसा भी जुटाती थी। बगही में उतना भी धनी  लोग नहीं रहते हैं कि कोई नौकरानी रखे।  सारे लोग घर का सारा काम खुद ही करते हैं। कुछ लोग जो बाहर कहीं रहते हैं, वे गाँव आकर घर पर शादी-विवाह पड़ने पर नौकरानी रख लेते हैं। उस समय लक्ष्मी चौका-बर्तन करके थोड़ा पैसे कमा लेती थी।

अपनी बेटी चिंता की शादी के बारे में  सोचकर लक्ष्मी दुखी होती रहती थी।  उसका मन मसोसता था  कि हमलोग अपनी बेटी को ना ही पढ़ा पाए, ना ही उसकी अच्छी घर में शादी कर पाएँगे। शादी के लिए पैसे कहाँ से लाएँगे। 

इधर अपने पड़ोस के रिश्तेदार के साथ चिंता की दोस्ती थी।  वह उससे बात करती थी। उन दिनों वह गाँव के सरकारी स्कूल में 8 वीं कक्षा में पढ़ाई कर रही थी। घर में मम्मी-पापा से शादी की बात सुनने के बाद वह उनसे यह नहीं कह पाई कि मैंने शादी के लिए लड़का पसंद कर लिया है और उसी से मेरी शादी करा दीजिए। उसे शर्म आ रही थी कि मम्मी-पापा क्या कहेंगे। डर भी था कि वे उसकी शादी रोक देंगे। 

चिंता घर में किसी से बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई।  बहन से भी नहीं।  आखिर एक दिन  अपने मम्मी-पापा को बिना बताए वह घर से निकल गई और बाहर जाकर उसने शादी कर ली।  फिर अपनी ससुराल चली गई। मेरे हिसाब से घरवालों की बिना मर्जी के चिंता की शादी के दो कारण थे। एक तो वह पहले से ही लड़के से प्यार करती थी। दूसरे, उसके मम्मी-पापा के पास उसकी शादी के लिए पैसे नहीं थे। वह उनको परेशानी से बचाना चाहती थी। 

लक्ष्मी के बेटा–बहू बाहर दिल्ली में जाकर कमाते-खाते थे। मजदूरी करते थे।  जो बाहर से सामान आता- जाता है, उसी को  ट्रेन में लादने-चढ़ाने का काम करते थे। इसमें इतनी कमाई नहीं होती थी कि वे  कुछ पैसे अपने गाँव लक्ष्मी को भेज पाएँ। तभी कोविड-19 महामारी आ गई और उसने सारी बाजी ही पलट डाली। लॉकडाउन लग गया। उनका काम ठप्प हो गया। कमाई का कोई स्रोत नहीं रहा।  हार कर वे अपने गाँव बगही लौट आए। 

बगही में लक्ष्मी और बिहारी दोनों बीमार थे। लक्ष्मी की हालत ज़्यादा खराब हो रही थी।  विनोद के पास पैसे नहीं थे कि वह अपनी माँ की दवा करा पाए। वह भी हालत से मजबूर था। घर में अनाज भी नहीं था। ना ही नहाने के लिए साबुन-सर्फ, ना ही खाना पकाने का सामान।  कुछ नहीं था।  उसने  अपनी पत्नी को उसके मायके भेज दिया। और जो सरकार की तरफ से थोड़ा राशन मिलता था उससे अपना घर चला रहा था। कभी कभार खेत में कुछ काम मिल जाता तो उससे जो पैसे आते उससे घर की सामग्री, सर्फ-साबुन ले आता। 

लक्ष्मी अपने घर और पति के देखभाल में इतनी व्यस्त हो गई थी कि वह अपनी सेहत पर ध्यान ही नहीं दे पाई थी।  समय पर और भर पेट खाना नहीं खाती थी।  आराम भी नहीं कर पाती थी।  एक दिन  लक्ष्मी को सारे शरीर में लकवा मार दिया।  उसने एकदम बिस्तर पकड़ लिया। उसका चलना-फिरना तो दूर बोलना भी मुहाल हो गया।  गनीमत थी कि लक्ष्मी की सेवा से बिहारी इतना तो ठीक हो गया था कि डंडे के सहारे उठ-बैठ जाता था, थोड़ी दूर चल भी पाता था। तो वही खाना पकाता था। नहीं संभव होता तो कभी-कभी किसी के यहाँ से खाने का कुछ माँग लेता था।  लेकिन लक्ष्मी के इलाज का कोई इंतज़ाम नहीं हो रहा था।

कोविड-19 महामारी ने सबके काम पर थापा मार दिया था। इस बार लक्ष्मी की बेटी मीना भी कोई मदद नहीं कर पाई। कारण कि उसका भी अपना परिवार है और इस तालाबंदी में कोई काम नहीं हो रहा था। मीना का अपना घर चलाना भी मुश्किल हो गया था। ये सब दुख तो था ही तब तक दूसरा दुख टपक पड़ा। लक्ष्मी का मिट्टी और खपड़े का घर था।  वह लगातार बारिश में गिर गया। वे लोग बेघर हो गए  आजकल वे अभी बगल में टाटी लगाकर तिरपाल के नीचे रह रहे हैं।

अंत यहाँ नहीं हुआ। लॉकडाउन में बेरोजगार हो गया विनोद बहुत परेशान था। उसने एक दिन अपने माँ-बाप को बहुत मारा। बोला कि तुमलोग मेरे लिए क्या किए हो! ना ही घर बनाए और ना ही कुछ पैसे रखे हो ? तो मैं कैसे तुम्हें खिलाऊँ ? मैं कुछ नहीं कर सकता तुमलोग के लिए।  और वह लक्ष्मी और बिहारी को छोड़कर घर से भाग गया। लक्ष्मी सोचती थी कि बेटा तो बुढ़ापे की असल लाठी है, मुसीबत में साथ खड़ा रहेगा।  लेकिन वह लाठी तो टूट गई। 

हालत खस्ता थी लक्ष्मी की।  किसी तरह बिहारी कुछ खाना पका लेता था, नहीं तो दया करके कोई दे देता था।  कभी-कभी मेरे घर से भी खाना दे दिया जाता था। यह हाल सुनकर लक्ष्मी की छोटी बेटी चिंता बगही आई।  पाँच दिन आकर रही और फिर ससुराल चली गई।  सुनकर मुझे बहुत बुरा लगा क्योंकि बेटी भी माँ-बाप की लाठी होती है।  चिंता को इस बार लक्ष्मी को सँभालना चाहिए था।  

दस  दिन के बाद विनोद घर वापस आया।  वह मारपीट वैसे ही करता था, लेकिन कम से कम लकवाग्रस्त बिहारी और लक्ष्मी के लिए खाना बना देता था और उनको खिला देता था। मगर बस खाना ही सबकुछ  नहीं होता है। लक्ष्मी को बहुत दुख था कि उसका देह-नेह करनेवाला कोई नहीं था। कभी कभी बिहारी लक्ष्मी को किसी तरह नहवा देता था।   

मुझसे लक्ष्मी लोग का दुख देखा नहीं जाता था, लेकिन मैं असहाय थी।  कुछ भी नहीं कर पाती थी।  कोविड-19 की वजह से मैं भी बहुत डरी थी। उनका दुख महसूस करती थी, लेकिन कुछ कर नहीं पाती थी।  घर पर कोई कैसे जाए ? एक तो बीमार हैं और ऊपर से एकदम साफ़-सफाई नहीं थी।  अपने टाटी के पास में ही पेशाब-पाखाना भी कर रहे हैं। उनकी मजबूरी समझते हुए भी उनकी  मदद के लिए मेरे घरवाले तैयार नहीं थे। वे बोल रहे थे कि तुम उनकी मदद कैसे कर पाओगी जब गाँववाले भी कोई कुछ नहीं कर पा रहे।  मैं क्या करती ? मैं उनकी कोई मदद नहीं कर पाई।  एक तो मैं अभी विद्यार्थी हूँ, दूसरे गरीब और उससे भी बड़ी बात यह है कि मैं एक लड़की हूँ। अपने पड़ोसी के लिए किसी से बात भी करती थी तो लोग बोलते थे कि तुम्हारा ही ‘हेडेक’ – सिरदर्द क्यों है, तुम अपना देखो। 

फिर भी मैं कोविड-19 में अपने दोस्तों के साथ जो राशन वितरण का काम कर रही थी उसमें लक्ष्मी के घर मैंने दो बार राशन पहुँचाया। उसमें आटा, चावल, आलू, तेल, मसाला, साबुन था।  इसके बाद चाहकर भी कुछ नहीं कर पाई।

मेरे गाँव में सरकारी अस्पताल नहीं है। थाना इटाढ़ में छोटा अस्पताल है। वहाँ पर लकवा रोगी के लिए दवा नहीं मिलती है। बड़ा सरकारी अस्पताल बक्सर में है। एक तो वह दूर है। दूसरा उसमें दवा लेना सबके लिए संभव नहीं है। इस तालाबंदी में वहाँ  पर जाना भी खतरे से खाली नहीं था। । जाने के बाद बहुत लंबी लाइन में लगना पड़ता है। उस अस्पताल में कोरोना संक्रमित लोगों को भी रखा जा रहा था। । सच पूछो तो ज्यादातर उसी की दवा हो रही थी। लेकिन गरीब-गुरबा बीमार हो जाए तो उसकी सुनवाई नहीं होती है।जिसके पास पैरवी हो वही सरकारी अस्पताल में दवाई करा सकता है। लेकिन जिसके पास पैरवी नहीं है उसका तो कोई सुनता नहीं है।  बस घंटों लाइन में लगे रहिए।

मैं सोचती हूँ कि अगर लॉकडाउन  नहीं लगा होता तो लक्ष्मी की भी कोई दवाई करा पाता।  इस  महामारी में सारे लोग अपने में ही सिमट गए थे। ।  लोगों का रोजगार बंद हो गया था।  एक दूसरे से दूरी बनाए रखना है। बीमार लोगों से तो और लोग डर गए थे अपने ही अपने को छूने में, मदद करने में डर रहे हैं कि कहीं मुझे भी ना कोविड हो जाए। ऐसे में सरकार को यह देखना चाहिए कि कोरोना से ही नहीं बाकी सारे रोग भी हैं जिसके कारण लोग मर रहे हैं। आखिर अब लक्ष्मी की लाठी कौन बनेगा ?

 
 

Baghi is a small village in district Baxar, state Bihar. I am a resident of this place.  Lakshmi, my neighbour, stays with her husband Bihariram. She has two daughters Meena and Chinta and one son Vinod.  Lakshmi was poor but never had the scarcity of food as her children were her support system. Lakshmi and Bihariram’s daughter Meena and son Vinod were married.  Things were going like this, when in 2018 Biharilal got a paralytic attack. That time their daughter Meena and Shyam took care of his medicines.  They had to travel 18kms from home, Meena and Shyam took Bihariram by an auto  Later Meena and Shyam went back to their home. 

Lakshmi took care of Bihariram, she also went to the field. She did harvesting, farming, sowing, transplanting and earned money.  The people in Baghi were not very rich, none of them hired domestic help; they all did the household chores by themselves.Those who resided outside the village, when came back to the village during any marriage or any other ceremonies would hire domestic help for the time period. Lakshmi at that time would cook and clean and earn money.

Lakshmi was always worried about her younger daughter Chinta. She was always worried thinking that we couldn’t give her a good education neither we are able to marry her off. How will we get so much money for her marriage?

Meanwhile Chinta was friend’s with a boy next door, she used to talk to him. Chinta was studying in a school in the village in 8th standard. When she heard that her parents were planning for her marriage, she could not tell them that she already had chosen a man for herself and she wanted to marry him. She was shy and hesitant thinking what would her parents say? She was also worried that they might stop her marriage.

Chinta couldn’t gather the courage to talk to anyone in the family neither her parents nor her sister. Finally one day she eloped from the house and got married and went to her in-laws house. According to me Chinta getting married against the will of her parents could have two reasons, one that she already liked a boy and second she wanted to save her parents from the financial burden of her marriage. 

Lakshmi’s son and daughter-in-law were working and residing in Delhi. They worked as laborers. The goods which came from outside were lifted up and down the same from the train. They did not earn that much that they could send some money back to Lakshmi in the village. Meanwhile COVID –19 occurred which changed the entire scenario. Lockdown was declared, they had no work, finally they had to go back to their village in Baghi.

Back in the village Lakshmi and Bihari both were sick. Lakshmi was in a serious condition and her son Vinod did not have money to spare for her treatment. He was also helpless due to the circumstances. They did not have soap to bathe or any other detergent, they also had the scarcity of ration in the house. He sent his wife back to her own house. Whatever ration he got from the government he used it for running his house and sometimes whatever he earned from working in the field he would use that to buy surf, soap for the house. 

Lakshmi was so busy looking after her husband and her house that she didn’t take care of herself, she would not eat on time  nor would she rest. One day Lakshmi got a paralytic attack, since she got bed ridden. She was unable to move, neither could she speak. Due to Lakshmi’s hard work and her good care for her husband, Bihari was now able to walk with the help of a stick at least. He cooked for her sometimes and sometimes If he couldn’t he would ask for some food from others, but they could not gather money for Lakshmi’s treatment.

This COVID- 19, pandemic had affected everyone's work. No one had work, this time.Lakshmi’s daughter Meena could also not help her either as she had her own family to look after and it got difficult for her to run her own house. This was already a hard time for all of them but meanwhile another hardship  entered their life. Lakshmi’s house was made of sand and cloth which broke due to the rain. They are homeless now and are living in a tent.

This did not end here. During the lockdown Vinod Lakshmi’s son was very troubled and he ended up beating his parents very badly. He said what have you done for me? Neither you have built a house nor have kept any money! How am I supposed to feed you? He said I cannot do anything for you and he ran away from the house. Lakshmi always thought that a son is the support during the old age, he will be the stick but her stick just broke.

They were all alone, sometimes Bihari cooked food for themselves and sometimes someone would give them food out of mercy . My family has also given them some food. Knowing the circumstances their younger daughter Chinta came to see them she stayed for 5 days and then went back to her in-laws. I felt very bad, as daughters can also be the stick of support for their family, Chinta should have taken their responsibility.

After 10 days Vinod came back home. He did beat them but at least he cooked food for his paralytic parents Lakshmi and Bihari, and would feed them. But food is not everything. Lakshmi was sad that there was no one to help her take  a bath, sometimes Bihari would help Lakshmi to take a bath.

I couldn’t see the suffering of Lakshmi but I was helpless. I could not do anything as I was also scared due to COVID-19. I could feel their pain, but could not do anything as how can anyone go to their home in this situation as one they are sick and second they did not take any precautions of cleanliness and sanitation. They were urinating and passing the stool near their tent only.  Despite knowing their problem my family was not ready to help them. They said how will I be able to help them? When the entire villagers are not able to do the same! I could not help them as I am a student right now secondly I am poor and moreover I am a girl. If I spoke about my neighbours to anyone they would say why is it my headache, I should mind my own business.

Despite this when I was distributing the ration in my village with my friends I sent some Potatoes, rice, oil, wheat, soap to Lakshmi’s house but  could not do anything more to help them. My village does not have any government hospital, there is a small hospital in thana Itaadh, but there was no medicine for paralysis. It is also very far and it is not possible for everyone to take medicines from there, It is not safe to go there during this lockdown. One has to stand in a very long queue, and also the hospital has corona patience admitted. Honestly it mostly had medicines for corona, but any poor person falls sick, he won't be admitted there. Anyone who has a recommendation (Pairvi) can get medicine from the government hospital and those who do not have it no one will listen to him, the person needs to wait in the queue for long hours.

I think if there was no lockdown someone could have got medicine for Lakshmi also. During this lockdown people are occupied among themselves only, they are out of work. Everyone has to maintain social distancing, people are now scared from the once who are ill. Own family members are scared to touch, get close or help their own once with the fear of getting covid.  In this case the government should see that not only due to corona and people are also dying due to other illnesses. Now who will be Lakshmi’s stick?

Written by Priya Kumari  (19), Buxar, Bihar

This article is part of an Livelihood Action Project of FAT with young girls from Bihar and

Jharkhand to enable them to become professional story writers. The training for story writting was done by Purwa Bharadwaj, and she edited and finalised the story in Hindi. The English translation of this story was done by an intern from TISS, Aqsa and final edits by Meetu Kapoor.