हम किसी से कम नहीं-We are not less than Anyone
सरिता 25 साल की है। वह पटना जिले के एक छोटे से गाँव में रहती है। अपने दो भाइयों की वह इकलौती बहन है। उसकी मम्मी आशा (सरकारी स्वास्थ्यकर्मी) के रूप में कार्यरत हैं। पापा पहले प्राइवेट स्कूल में पढ़ाते थे, लेकिन अब वो सिर्फ अपने खेत में काम करते हैं।
सरिता के पापा तीन भाई हैं। लॉकडाउन में सरिता के पापा का एक पैर टूट गया था,घर में चल रहे बँटवारे के चक्कर में। उसके चाचा सरिता लोगों को घर में चापाकल, बाथरूम और छत का इस्तेमाल नहीं करने देते थे। उन्होंने सिर्फ एक कमरा दिया था। पानी दूसरे के नल से लाना पड़ता था और बाथरूम के लिए खेत में जाना होता था। लॉकडाउन के शुरू में ही सरिता के घर का आटा खत्म हो गया था। उसकी मम्मी ने गेहूँ धोकर दूसरे की छत पर सुखाने के लिए डाला था। बारिश जैसा मौसम होते देख उन्होंने सरिता के पापा को गेहूँ छत से उतार लाने के लिए कहा।
वे गेहूँ का कनस्तर सिर पर रख कर सीढ़ियों से उतर रहे थे, अंतिम सीढ़ी से उनका पैर फिसल गया और वो गिर गए। उस समय ज्यादा दर्द नहीं हुआ था, लेकिन उनको चलने में परेशानी होने लगी। दर्द की दवाई और मलहम से कुछ ठीक नहीं हुआ। पूरी रात ऐसे ही गुजरी क्योंकि वे शाम को गिरे थे। गाँव में, जहाँ आस-पास में कोई बड़ा अस्पताल नहीं है। दूसरे दिन सुबह सरिता के पापा बोले कि मैं जा रहा हूँ पैर मड़वाने क्योंकि मुझे लग रहा है कि मोच आ गई है। यह सुनकर सरिता बोली कि "पापा आप पहले एक्सरे करवा कर देखिए",नहीं तो माड़ने के दौरान पैर को खींचना पड़ता है और तब परेशानी बढ़ जाएगी।
सरिता की बात मान कर उसके पापा अस्पताल गए। वहाँ एक्सरे हुआ तो फ्रैक्चर निकला। वहाँ से सरकारी अस्पताल पहुँचे। जाने के बाद पता चला कि वहाँ पर प्लास्टर करने की व्यवस्था नहीं थी। आखिर में पटना के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में गए। हड्डी के डॉक्टर ने पैर का प्लास्टर किया। 45-50 दिन के लिए आराम करने को बोला। सरिता खुश है कि अब प्लास्टर दो दिन में कटने वाला है। लेकिन वह अपने पापा को थोड़ा चिंतित ही देख रही थी । डॉक्टर क्या बोलते हैं, देखना था।
बीमारी का अंत नहीं है। सरिता 12 वीं क्लास में पढ़ती थी। कब्बडी खेलना उसे पसंद था। लेकिन 2012 में अचानक से उसको दाँये हाथ में दर्द होने लगा, और वह हाथ पतला होने लगा। पटना के एक अस्पताल से कुछ दिन इलाज चला, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। यह देख कर डॉक्टर ने दिल्ली के लिए रेफर कर दिया। दिल्ली में जाँच के बाद FSHD नामक जेनेटिक बीमारी का पता चला। इसमें मांसपेशियाँ धीरे धीरे काम करना बंद कर देती हैं। डॉक्टर ने कह दिया कि इस बीमारी की कोई दवा भी नहीं है। सरिता को सिर्फ व्यायाम करना है।
घबराहट के मारे सरिता के परिवार वाले इस बात को सरिता से छुपाते रहे। कुछ दिन बाद जब उसे मालूम हुआ तो वह कहने लगी कि मैं अब जी कर क्या करूँगी। उसने एक साल तक पढ़ाई छोड़ दी थी और कई बार आत्महत्या करने की कोशिश भी की थी। उस समय उसके मम्मी-पापा ने उसे भरोसा दिया कि तुम जल्दी ही ठीक हो जाओगी। वे अलग-अलग उदाहरण देकर बोलते थे कि तुम्हारे जैसे इस दुनिया में बहुत सारे लोग हैं, तुम सिर्फ अकेली नहीं हो, और इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है कि तुम खुद को मिटाना चाहती हो ।
FSHD नाम की यह बीमारी सरिता को 17 साल की उम्र में हुई थी। तब से लोग बोलते थे कि अब शादी करने में ही सबकी भलाई है, नहीं तो बीमारी बढ़ने पर कौन लड़का शादी करेगा इससे। परिवार वाले का यह भी कहना था कि सरिता की बीमारी के बारे में लड़केवालों को पहले से नहीं बताना है। इससे सरिता और परेशान हो गई। उसने सोचा कि अगर मेरी शादी हो गई और लड़के वाले स्वीकार नहीं करेंगे तो मैं क्या करूँगी। धीरे-धीरे उसकी बीमारी बढ़ती जा रही थी । अब खेलना-कूदना, चढ़ना और लंबा पैदल का सफर भी मुश्किल हो गया है।
सरिता के पड़ोस में एक महिला है जो विकलांग है। उसको तरह तरह से परेशान किया जाता है। पति भी हरदम कोसते रहते हैं। और वो कुछ नहीं कर पाती है सिर्फ रोने के अलावा। उसने पढा़ई भी नहीं की है। कोई सरकारी सुविधा, जैसे महिला हेल्प लाइन नंबर पर भी सम्पर्क नहीं करती है। पति-पत्नी का झगड़ा है, यह कहकर मदद करनेवाले दूसरे लोगों को भी चुप करा दिया जाता है। यह सब देखकर सरिता ने ठान लिया कि वह जब तक आत्मनिर्भर नहीं बन जाती तब तक शादी नहीं करेगी। उसने अपना प्रस्ताव परिवार के सामने रखा। पहले तो सब नाराज़ हो गए। सब लोग एक तरफ और सरिता अकेले पड़ गई। आखिरकार उसने अपने पापा से सारी बातें कीं और वे मान गए।
M. Sc. में सरिता के दाखिला लेने के समय छोटा भाई बोला कि वो अब नहीं पढ़ेगी और अकेले इसको कहीं नहीं जाना है। दाखिले की पहली लिस्ट में ही सरिता का नाम आ गया था, मगर किसी ने कुछ नहीं कहा। सरिता ने फिर अपने पापा से बात की। उन्होंने बेटे को समझाने की कोशिश की। जब भाई ने साफ इनकार कर दिया कि वह नहीं पढ़ेगी तब उसके पापा बोले कि यह मेरी बेटी है, तुम्हारा इसमें बोलने का कोई अधिकार नहीं है। मैं जो चाहूँगा, जहाँ चाहूँगा वहाँ सरिता पढ़ेगी और इसके सारे खर्चे मैं देता हूँ। अंत में सरिता का मगध विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान में नामांकन हुआ, लेकिन भाई ने सरिता से बोलना बंद कर दिया।
सरिता ने हार नहीं मानी। पढ़ने के लिए गाँव से पटना 35 किलोमीटर जाना पड़ता था। वापस आकर घर का काम भी करना पड़ता था। ऊपर से अकेले पढ़ने जाने और जींस-शर्ट वगैरह पहनने पर दादाजी की टोकाटाकी सुननी पड़ती थी। तब फिर सरिता ने अपने पापा से बात की और उन्होंने दादाजी को समझाया कि सरिता पढा़ई में बहुत अच्छी है। हमेशा अच्छे नंबर लाती है और हम चाहते हैं कि उसका भविष्य सँवरे। वह टीचर बनना चाहती है। विकलांगता के कारण ज्यादा भाग-दौड़ वाला काम वह नहीं कर पाएगी, इसलिए टीचर बनने के लिए उसको पढ़ना ही है। दादाजी समझ गए। तीन साल पहले सरिता ने एमएससी पास किया। फिर से उस पर शादी को लेकर दबाव पड़ने लगा।
उसी समय सरिता फैट संस्था से जुड़ी। उसने कम्प्यूटर और कैमरा चलाना सीखा। जल्द और जबरन शादी पर उसने समझ बना ली थी। उसका मनोबल बढा़। उसने प्राइवेट बी.एड. कॉलेज में नामांकन कराया। फील्डवर्क करके रुपये इकट्ठा करके और पापा के सहयोग से एक साल की 75000 रुपए फीस उसने जमा कर दी थी। तभी लॉकडाउन लग गया। अब आफत का पहाड़ टूट पड़ा है। सरिता के पापा का अभी तक पैर का इलाज चल रहा है। मम्मी की हार्ट की बीमारी की दवाई चल रही है। लॉकडाउन में उनका काम बंद, भाई की पढा़ई बंद और नौकरी की तलाश भी बंद हो गयी। ।
घर में राशन को लेकर कोई परेशानी नहीं है, मगर दाल, सब्जी, दूध और दवाई को लेकर चिंता है। पापा की तबीयत खराब होने के बाद सरिता घर के खर्चे चला रही थी। तालाबंदी में उसका ऑनलाइन क्लास होता है और होमवर्क भी मिलता है। घर का काम है ही। सुबह साढ़े 6 बजे से आधी रात तक वह जुटी रहती है। शरीर के साथ अब उसके मन पर बहुत दबाव पड़ने लगा है। लेकिन वह समय निकालकर फैट के कामों में जुड़ती है। फैट की टीम से उसको हर तरह की मदद मिल रही है।
सरिता जहाँ पर रहती है वहाँ पर एक दिन लॉकडाउन के दौरान दो परिवारों के बीच खेत को लेकर झगड़ा हो गया। एक ने दूसरे व्यक्ति के खेत की आरी को काट दिया था। दोनों तरफ से मारा -मारी हो गई। एक तरफ के लोग कम जख्मी हुए थे, दूसरी तरफ के ज्यादा। उस समय सरिता भी वहाँ पर थी। जिस लड़के का सर फटा था वह सरिता के दरवाजे के पास जाकर बैठ गया। तब तक उसके परिवार के लोग भी आ गए और सब रोने लगे। उस समय सरिता ने दुपट्टे से उस लड़के का सर बाँध दिया। वो दर्द से चिल्ला रहा था और कह रहा था कि मुझे अस्पताल ले चलो। सरिता उसके पापा से बोली कि लड़के को ले जाइए अस्पताल। वो बोले कि हमारे पास कोई साधन नहीं है कैसे जाएँ ? यह सुनकर सरिता ने अपनी मम्मी को कहा कि मोटरसाइकिल की चाबी लाकर दे दो। पता नहीं सरिता की माँ ने वह बात सुनी या नहीं, वह नहीं लाई। इसके बाद सरिता ने देर नहीं की और अस्पताल जाने के लिए अपने घर से मोटरसाइकिल की चाबी लाकर दे दी।
मामला कोर्ट में गया। केस दर्ज हुआ दोनों तरफ से और सबको जेल में बंद कर दिया गया। जिसको चोट लगी थी वह अस्पताल में था। दो दिन बाद कोर्ट से नोटिसआई तो पता चला कि जिस पक्ष को झगड़े में ज्यादा चोट नहीं लगी थी उन लोगों ने सरिता के पापा, भाई का भी नाम कोर्ट में दे दिया। क्योंकि उस पक्ष को लग रहा था कि ये दूसरे पक्ष की मदद कर रहे हैं। सरिता को वे लोग गालियाँ दे रहे थे और लंगड़ी बोल रहे थे। पुलिस घर पर पापा और भाई को पकड़ने के लिए आ रही है तो सब लोग सरिता को ताना दे रहे हैं कि बड़ा बनी थी मदद करनेवाली। सरिता समझाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन बोला जा रहा था कि बाकी सब लोग वहीं पर थे। "तुमको बोलने की क्या जरूरत थी। तुम्हारी वजह से ये सब दिन देखना पड़ रहा है'।
तकलीफ होती थी सरिता को इन सब से, लॉकडाउन में आगे का रास्ता भी नहीं सूझ रहा था। दूर तक नौकरी की उम्मीद नहीं दिख रही थी। लेकिन उसने अपनी अंदरूनी शक्ति को पहचाना है। वह खुद से अपना सारा काम करती है और अब वह अपने आपको किसी से कम नहीं मानती।
Sarita is 25 years old, she lives in a village which is in a small district of Patna. She is the only sister of her two brothers. Her mother Asha works as a government health worker, her father was a teacher in a private school but now he only works in the fields.
During the lockdown Sarita’s father got a broken leg due to the division of the house. Sarita’s father was three brothers, her uncle didn’t allow them to use the handpump, bathroom and the terrace. He has given them only one room, they had to fetch the water from others tap and for the bathroom they went to the field in the open. As the lockdown started Sarita’s family did not have any wheat (atta) her mother washed the wheat and used someone else’s terrace to get them dry.
When her mother saw that it might rain she asked Sarita’s father to get the tumbler of wheat downstairs, when he was coming down with the tumbler on his head at the last step he slipped . At that time he could not feel much pain but he was having difficulty walking. The medicines and ointment did not work much. He spent the entire night like this as he fell in the evening and there was no big hospital near the village. Next day Sarita’s father said he is going for physiotherapy as he thinks he got a sprain in his leg. Sarita said to her father “ First you get an x-ray done, as during the massage they have to stretch the leg and it might cause a problem later.
Sarita’s father went for an x-ray and the result showed that there was a fracture in his leg. He went to a government hospital, but found out that there was no facility for plaster. Then they went to a private hospital in Patna where an orthopaedic doctor plastered his leg and asked him to rest for at least 45-50 days.
Sarita was happy as only two days were left for her father to get rid of the plaster, but her father was little worried and now Sarita waited to see what the doctor had to say!
There was no end to the ailments. Sarita was in 12th standard and she loved to play Kabbdai, one day she had a severe pain in her right hand and that hand started getting thinner. She was getting her treatment from Patna’s hospital but then it did not help much. She was referred to go to Delhi for her treatment. Here she was diagnosed with FSHD, a genetic disorder. In this illness the muscles stop working, the doctors said that there is no treatment for this Sarita has to exercise only.
At first her family was worried and kept it a secret from her, but later when she got to know about it she said “What will I do staying alive?” She left her studies within one year and she also attempted suicide few times. Her parents consoled her saying she will be fine soon, they gave her different examples to motivate her, they said there are so many other people like you in the world, you are not alone. They also said it is not your mistake that you want to finish yourself.
Sarita was diagnosed with FSHD at the age of 17 years, since then people started saying that she should get married , otherwise as the ailment would increase no boy would marry her. Her family also said that the boy and his family should not be told about Sarita’s disease in prior, Sarita got more worried listening to it.
Sarita kept thinking that if the boy and his family got to know about her disease later what will happen after that? Slowly Sarita’s health started to deteriorate more, now playing, running, climbing and long walks were getting difficult for her.
During her admissions in M.Sc SARITA’S brother said now she won't study and neither she can go out alone. Sarita got her name in the first list but no one from her family said anything. Sarita asked her father and her father tried to make her brother understand. Her father said “She is my daughter and you have no right to say this, whatever I want wherever I want she will study, I will bear her expenses. Later Sarita got her admission in Botany in Magadh University, but her brother stopped talking to her.
Sarita did not give up, she travelled 35 km from her village to university, she even did household chores when she came back. She had to listen to her grandfather’s sarcasm because she wore a jeans shirt and she had to go alone for her studies. She spoke to her father, her father spoke to her grandfather, he said that Sarita is a bright student and she always gets good marks, I want her to have a bright future. She wants to become a teacher. Due to her disability she wants to be able to do much active work, so she has to study to become a teacher. 3years back Sarita completed her M. sc, after which she was again pressurized with the idea of marriage.
Sarita joined the FAT Organisation, she learnt to use a camera and computer and she also grew an understanding on early and forceful marriage. She got confident and got herself enrolled in a private B.ed college. She worked as a fieldworker and some with the help of her father she could submit her fees of Rs 75000/- for a year. Immediately after that lockdown was declared, it brought all the trouble in their life. Sarita’s father was also going under treatment for his leg and also her mother was taking medicines for her heart. Due to lockdown none of them had work, their studies also stopped, and the hunt for a job also stopped.
There is no scarcity of ration in the house, but they were worried about milk, pulses, vegetables and medicines. After her father’s ailment Sarita was bearing the household expenses. Apart from household chores, she has her online classes and homework to complete. From morning 6 o'clock till midnight she was all worked up, other than her physical health her mental health was also getting affected. Despite all this she managed to take out time and was active with the work of FAT organisation. She does get a lot of help from the Fat Organisation.
One day there was a quarrel between two families just where Sarita resides. They were fighting over the farmland, one party chopped off the other one’s field with a saw (Ari). The quarrel turned into a physical fight, one party was seriously injured and the other was less injured. Sarita was present there when this was happening, one of the boys was injured on his head , he went and sat near Sarita’s door step. The injured boy’s family arrived and they started crying seeing him, meanwhile Sarita tied his head with her dupatta. He was shouting out of pain and was constantly asking to be taken to hospital. She told her father to take the injured boy to the hospital, but her father said “I have no conveyance to take him , how should I ?” Sarita immediately told her mother to give her the keys of the motorcycle, but her mother didn’t listen to her or she didn’t get the keys. Sarita, not wasting a minute, went and gave the keys of the motorcycle.
The matter was taken to court, there was a complaint from both the parties and everyone was put behind the bars. The boy who was injured was in hospital. Later Sarita got to know that the party, who was less injured, had also given Sarita’s father’s and brother’ s name in the court. The less injured party thought they were helping the other side, they were also abusing Sarita and was calling her disabled. The police was coming to arrest Sarita’s father and brother and everyone was taunting Sarita that “Go Go you wanted to help!” Sarita was trying to understand the situation, but it was said to her that “There were other people present as well, why did you have to go and help and say anything? Because of you we have to see these days!”
Sarita feels bad listening to all this. During this lockdown she can't even figure out her way ahead. She can't see any hope for a job currently, but she learnt about her self confidence, now she does her own work and also she does not treat herself less than anyone else.
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