प्रवासी मजदूर गुड़िया देवी की कहानी I Story of Migrant Worker Gudiya Devi
गुड़िया का विवाह 14 साल की उम्र में हो गया था। गौना एक साल बाद किया गया था। गुड़िया को नहीं पता था कि उसके साथ ससुराल में क्या होनेवाला है। ससुराल आने के एक साल बाद उसको बच्चा हो गया, तीन साल बाद 18 साल की उम्र में उसको दूसरा बच्चा भी हो गया। आज वह बहुत पछताती हैं। सोचती है कि मेरी जल्दी शादी नहीं हो गई होती, मैंने पढ़ाई की होती तो आज मजदूरी नहीं करना पड़ता लेकिन उसके साथ ऐसा नहीं हुआ।
ससुराल में गुड़िया को सास बोलने लगी कि घर में खाना कहाँ से आएगा।
उसका पति मकान बनाने के काम में ईंट, बालू, सिमेंट ढोने का काम करता था। सास की गाली के साथ गुड़िया, पति का थप्पड़ भी खाती थी। परेशान होकर गुड़िया ने अपने पति और बच्चे के साथ गाँव छोड़कर कहीं बाहर काम करने का सोचा। पति को उसने मनाया और 2019 के जुलाई महीने में उसके साथ दिल्ली चली गई।
दिल्ली में गुड़िया की मौसी की बहू रहती है यानी उसकी मौसेरी भाभी, वह अच्छी थी। उसने गुड़िया को अपने घर में कुछ दिन रखा. उसके बाद गुड़िया के पति को चप्पल की कंपनी में नौकरी मिल गई, तब से वे लोग नेहरू नगर में भाड़ा पर एक कमरा लेकर रहने लगे। वह भी एक कंपनी में कुकर में सीटी सेट करने का काम करने लगी थी।
पति और बच्चे के साथ गुड़िया अच्छे से रह रही थी। उसके पति ने एक-दो बार मार-पीट की थी, लेकिन वह उसकी बात मानता भी था। दिल्ली में रहते हुए एक साल होने जा रहा था। अचानक कोरोना महामारी आ गई, जिस कारण लाँकडाउन लगाया गया. अचानक कंपनी सब बंद हो गई। गुड़िया और उसके पति दोनों का काम बंद हो गया, गुड़िया ने बचाकर जो थोड़ा बहुत पैसा रखा था वह एक हफ्ते में खत्म हो गया। भोजन के लिए पैसा नहीं था। छोटा बच्चा भूख से रोता रहता था।
लाँकडाउन के समय जो पका हुआ खाना और राशन बँटता था गुड़िया को वह भी नहीं मिल रहा था। कहा गया कि उन्हीं लोग को खाना और राशन मिलेगा जिनके पास आधार कार्ड या राशन कार्ड या कंपनी का आई डी कार्ड हो गुड़िया के पास कोई कार्ड नही था । तो उसे कुछ नहीं मिला, सारा गुस्सा उसके पति ने उस पर निकाला। वह अक्सर मारने-पीटने लगा, वह बहुत रोती थी। मैं उसके पास कभी कभी फोन करती तो वह हमसे बात करते समय भी रोती थी। जब ससुराल़ आई तब से मैं उसके साथ रहती थी। मैं देर देर तक उससे बात करती थी ताकि उसे खुशी मिले।
मुसीबत के समय गुड़िया की मौसेरी भाभी गुड़िया से पैसा माँगने लगी जो उसने उनलोगों को अपने घर में 10 दिन रखा था। गुड़िया के पास पैसा था ही नहीं। बहुत हिम्मत जुटाकर वह छिप छिप कर काम कर रही थी जिससे भूखे न मरे. कंपनी बाहर से बंद करके काम होता था। पीछे के रास्ते से चुपके से वह मास्क लगाकर काम करने जाती थी। 20 दिन काम हुआ. लेकिन उस काम का उसे पैसा नहीं मिला, गुड़िया उदास हो गई।
उसके इलाके में कुछ बाहर के लोग खाना ऑटो से लाकर बाँटते थे। उसने खाना बाँटनेवाले लोग से बात की कि भैया मेरे छोटे-छोटे बच्चे भूखे हैं। मुझे कुछ भी खाने को दे दो. बचा-कुचा दे दो. गुड़िया बोली, भैया, हमारी सरकार तो हमें थाली पीटने और दिया जलाने को बोली, लेकिन सरकार ने हमें हक नहीं दिया। इस वक्त आपलोग खाना भी नहीं दे रहे हैं इतना कहने-सुनने पर खाना बाँटनेवाले ने थोड़ा सा उसे दे दिया, मगर वह बहुत कम खाना था। अपने बच्चों को खिलाकर गुड़िया खुद उपासे (उपवास से) रह गई। उसके पति ने उससे बात करना बंद कर दिया था। कुछ भी बोलने पर वह गाली देने लगता था। लॉकडाउन के पहले वह बहुत कम नशा करता था. लेकिन लॉकडाउन के समय उसका नशा काफी बढ़ गया। शराब, गुटका और न जाने क्या क्या! पियक्कड़ पति गुड़िया से शराब पीने के लिए पैसा माँगता था और नहीं देने पर मारता-पीटता था। इतना ही नहीं, जिस दिन लॉकडाउन लग गया उसके 5 दिन बाद मकानमालिक ने सारा पैसा लेकर गुड़िया से अपना कमरा भी खाली करवा लिया।
दिल्ली में जोगी एक जगह है, अपने बच्चे और पति के साथ वहाँ जाकर गुड़िया ने एक मकानमालिक से कमरे के लिए बात की। मकानमालिक ने रहने को कमरा दे दिया, उसने गुड़िया की भरसक मदद की। उधर खाना बाँटनेवाले लोग से जो खाना मिलता था उसमें से जब बचता तो मकानमालिक गुड़िया को थोड़ा सा दे देते थे। उसी में से थोड़ा-थोड़ा अपने बच्चों को वह खिलाती थी। एक बच्चा 5 साल का है दूसरा 2 साल का, वह खुद सबसे कम खा कर सो जाती थी। किसी तरह गुड़िया ने लॉकडाउन के तीन महीने गुजारे, वह अपने गाँव वापस आने का सोचने लगी। पास में एकदम पैसा नहीं था। अंत में वह अकेले सोनार से जाकर मिली, सोनार से गुड़िया ने अपना मंगलसूत्र बेचने की बात की।
मंगलसूत्र सोने का था। सोनार ने मंगलसूत्र लेकर एक हज़ार रुपया गुड़िया को दे दिया, गुड़िया को नहीं पता था कि वह मंगलसूत्र असल में कितने का है। उस पूरी रात वह सोचती रही कि मैं क्या करूँ. मकानमालिक का किराया चुकता कर दूँ कि अपने गाँव चली जाऊँ। इतने में उसके पति ने देख लिया कि वह सोई नहीं है। उसने पूछा कि क्या सोच रही हो? गुड़िया ने सारी बात बताई। उसके पति ने सलाह दी कि हमलोग इतने पैसा से कुछ दूर जा सकते हैं, उस रात वह शराब नहीं पिए हुए था।
गुड़िया को उस मकान में जबरदस्ती होने का डर भी लग रहा था। उसके मकान में चोर-बदमाश घुस जाते थे, उसका दरवाजा पीटने लगते थे, एक बार तो तोड़ भी दिया था। गुड़िया और उसके पति चिल्लाने लगे तो वह चोर भाग गया था।
दूसरी रात को सारा सामान छोड़कर छिपकर गुड़िया वहाँ से भाग निकली, छोटा बच्चा गोद में था, पूरी रात वे लोग चलते रहे। अगली सुबह एक जगह जाकर दम लिया।
कुल 5 दिन और 5 रात गुड़िया पैदल चलती रही। दो बच्चे छोटे-छोटे साथ में. बड़ा बच्चा पैदल चलता फिर थक जाता तो पिता गोद में उठा लेता था। लेकिन गुड़िया ने अपने छोटे बच्चे को कभी गोद से नहीं उतारा था. कहीं पानी पीती थी तो उसे भी पिला देती थी. 5 दिन बिना ठीक से खाना खाए पैदल चलते रहे सब. बीच में दिल्ली बोर्डर पर आने के बाद पुलिस भी मार-पीट करने लगी थी. बोर्डर पर करीब 2000 लोग हो चुके थे. सारी महिलाओं ने पुरुष को पीछे किया और आगे आकर प्रशासन के लोगों से कहने लगीं कि हमारे बच्चे भूखे हैं. वे पूछने लगीं कि यहाँ क्यों रोका जा रहा है और हमको खाना क्यों नहीं दिया जा रहा है. वहाँ की पुलिस ने तब सबको पानी पिलाया और बच्चे को दूध दिलवाया।
बाद में वहाँ से स्कूल में ले जाकर गुड़िया के परिवार को 14 दिन तक रखा गया. सोने के लिए केवल दरी बिछाई गई थी. वहाँ उनलोगों को केवल एक मास्क मिला। सफाई के लिए कुछ नहीं मिला. नहाने के लिए पानी था, साबुन नहीं. दवाई छिड़काव होता था. वहाँ भी खाना एक टाइम देते थे. दिन में 12 बजे दाल-चावल मिलता था। वह भी कम, फिर भी गुड़िया खुश थी क्योंकि सारे लोग एक जैसे थे। उसके बाद एक बस में ले जाकर लोगों को ट्रेन में बैठा दिया गया।
वहाँ से बक्सर जिला आने में 24 घंटे लगते हैं, लेकिन इस बार गुड़िया को अपने गाँव पहुँचने में 3 दिन और 3 रात लग गया. ट्रेन से आने के बाद गुड़िया परिवार के साथ अपने ब्लॉक में एक रात रही। चेक होने के बाद स्कूल में 14 दिन फिर रही, उसके बाद जाकर घर आ पाई। आई तो भी चैन नहीं था. उससे किसी ने खाने के लिए नहीं पूछा। मुखिया और गाँववाले उसे घर में नहीं रहने देना चाहते थे। गाँव से बाहर जाने के लिए बोलते थे। सबको डर था कि वह कोरोना लेकर आई है। उसका पति मारने लगा कि यही हमें दिल्ली से लेकर आई है. तब कुछ बूढ़े लोगों ने उसे समझाया।
गुड़िया को बहुत अफसोस होने लगा. फिर भी उसने हिम्मत नहीं हारी। वह बोली कि मैं अपने घरसे कहीं बाहर नहीं जाऊँगी।वह एक महीने तक अपने घर में रही। उसको कोरोना नहीं था। अभी तक उसके घर में उससे कोई अच्छे से बात नहीं करता है। गुड़िया के मोबाइल पर मकानमालिक फोन करते हैं कि पैसे दे दो नहीं तो केस करूँ। गुड़िया आज भी उतना ही परेशान है। वह चाहती है कि कोई काम मिले तो करे. वह 10 वीं फेल है। वह भी गौना के कारण हुआ। माँ ने गौना के बाद 10वीं की परीक्षा दिलवाई थी तो रिजल्ट खराब हो गया।अब उसे काम नहीं मिल रहा है।काम मिल जाता तो गुड़िया की समस्या दूर हो जाती। उसे पढ़ी-लिखी लड़की होना था, लेकिन प्रवासी मज़दूर बनकर रह गई है।
पूनम कुमारी, बक्सर, बिहार द्वारा लिखित
यह लेख बिहार और झारखंड की युवा लड़कियों के साथ FAT के एक लाइवलीहुड एक्शन
प्रोजेक्ट का हिस्सा है, ताकि वे पेशेवर कहानीकार बन सकें। इन लड़कियों को पुरवा भारद्वाज ने कहानी लेखन का प्रशिक्षण दिया था, और उन्होंने हिंदी में कहानी को संपादित और अंतिम रूप दिया। इस कहानी का अंग्रेजी अनुवाद TISS के एक इंटर्न, अक़्सा द्वारा किया गया है और प्रियंका सरकार ने अंतिम संपादन किया है।
Migrant Laborer Gudiya Devi
Gudiya was married at the age of 14. Her gauna (ceremony of going to her in-laws house permanently) was done a year later. Gudiya had no idea about what life would be like at her in-laws place. She had her first child a year after she got married. Three years later, at the age of 18, she gave birth to her second child. Today, she works as a daily wage labourer. She often regrets that if she would have been allowed to pursue her studies rather than being married off at an early age, she would have been better off financially. Gudiya's husband works at civil constructions, carries bricks, sand and cement. Her mother-in-law often says that if Gudiya would not work too, they may not have enough food to eat. Along with the mother-in-law's abuse, Gudiya also used to get beaten up by her husband. Feeling really distressed, Gudiya thought of leaving the village with her husband and child to work somewhere else. She persuaded her husband and went to Delhi with him in July of 2019.
The Gudiya's cousin brother and wife lives in Delhi and they stayed with the family for a few days. After that Gudiya's husband got a job in a slipper making company. Since then, they started living in a room taken on rent at Nehru Nagar. Gudiya also started working in a company that manufactured parts of a pressure cooker.
Gudiya was living happily with her husband and children. Her children were now 5 years and 2 years old respectively. It was going to be one year since they moved to live in Delhi. Suddenly there was the pandemic because of which lockdown was imposed in the entire country. Companies were all shut down. Both Gudiya and her husband had to stop working. The little money that she had saved got over within a week. There was no money for food. Her children kept crying because of hunger.
At the time of the lockdown, Gudiya was not getting any cooked food or dry ration. It was being distributed to people who have an Aadhaar card or ration card or company ID card. She did not have any ID proof. Her husband started taking out all of the anger on her. He used to often beat her up. Gudiya used to cry a lot. She would also cry while talking to us on the phone. I was with her when she came to her in-laws for the first time. I used to talk with her for a long time so that she would stay happy.
During these troubled times, Gudiya's cousin-in-law started asking her for money for the time she had kept their family for 10 days in her house. Gudiya had no money. She was working illegally at her company, without anyone's knowledge to prevent her family from starving to death. Although the company was shut for the world, she used to go for work secretly with a mask through the back gate of the company. She worked for 20 days but she did not get any compensation for that work.
Some outsiders in her area used to bring food and distribute it on a three wheeler auto. She talked to the people who distributed the food and told them that her young children were hungry and asked them to give her any food leftovers. She told them that the government asked them to beat the plate and light diyas, but they did not give us any other rights. She requested them at least to give some food. On hearing this, the relief workers gave her some food. But the food was not sufficient to meet her complete family needs. She fed her children and slept empty stomach. Her husband stopped talking to her and abused her verbally. Before lockdown, he had reduced his alcohol consumption. But at the time of lockdown, his intoxication increased. Alcohol, tobacco and what not! He used to ask for money for alcohol from Gudiya and beat her up for not giving it to him. Not only this, their landlord also took all the money and asked the the entire family to leave the room within 5 days of lockdown.
There is a place called Jogi in Delhi. Gudiya talked to a landlord for a room in this location who agreed to provide them a place to stay. He did his best to help her. When he used to get food/ration from the people who distributed the food, the landlord would give the remaining to Gudiya. Out of that little food she would feed her children. She would always get the least amount of food. Somehow she was able to manage like this for three months of lockdown. Eventually, she started thinking of going back to her village as she had no money left with her. Finally she met a jeweller and sold her mangalsutra.
It was a gold mangalsutra. The jeweller bought the Mangalsutra and gave one thousand rupees to Gudiya for the same. She did not know the actual price of her mangalsutra. That whole night she kept thinking about what she should do with the money. Whether she should go back to the village or pay the rent? At this time, her husband saw that she was not asleep and asked her what she was thinking. He was not drunk that night. Gudiya explained the whole situation. Her husband advised her that they can go to some other place through the little money they had.
Gudiya was also scared as the area was afflicted with petty thefts and crimes. Thieves and crooks used to enter the landlords house and bang at her door. They even broke the door once. When she and her husband shouted, the thieves ran away. The next day, Gudiya and her husband with the two children left their room in Delhi, leaving all their belongings behind. They kept walking all night until they reached some place in the morning.
They traveled on foot for 5 days and 5 nights with their two small children. If the older child used to get tired, then his father would lift him up. But Gudiya never put her younger child from her hands. If she used to drink water, she would also give him to drink it. Everyone walked on foot for 5 days without eating anything properly. The police started beating everyone near the Delhi border. There were about 2000 people at the border at that time, wanted to return home to their villages. All the women came forward and told the administration that their children were hungry. They started asking for the reason, why they were being stopped there and why they were not getting any food. The police there then gave everyone water to drink and provided milk for the children.
On reaching the border, Gudiya's family was made to stay for 14 days at a school. Only a mat on the floor was provided for sleeping. They were given only one mask there. Nothing was given for cleaning. Even though there was water for bathing, there was no soap. Medicine was sprayed on them. Food was also given only once in a day. Lentil rice was provided to them at 12 o'clock in the day, in very small portions. After 14 days, everyone was taken in a bus and they all boarded a train.
It usually takes 24 hours for them to reach Buxar district by train. From there, it took Gudiya and her family 3 days and 3 nights to reach her village. After reaching by train, they had to stay at the block level dispensary for one night in her block for their COVID checkup. After being checked, they were sent to stay at a school for another 14 days. Only after that, were they able to go home. There was no rest even after she came back home. Nobody gave them food to eat. The Sarpanch and the villagers did not want them to stay in their own house. They were asking her to go and stay outside the village. Everyone was afraid that she had brought coronavirus along with her. Her husband started beating her, saying she was the reason why they had to come back from Delhi. Some of their neighbours in the village tried explaining her husband to not hit her.
Gudiya now just stays at home, does not go out anywhere. After returning also, she stayed in her house for a month even though she did not have Corona. Nobody at her home talks to her properly. The landlord from Delhi calls Gudiya on her mobile phone and asks for the rent, and says he will file a case against her, if she doesn't pay. Gudiya stills feels desolate and depressed. She wants to do work but she is not getting any work anywhere. She failed her class 10th exams because of her gauna. If she could find some work, her problems would go away. She was supposed to be an educated woman, but unfortunately, she has ended up becoming a migrant laborer.
This article is part of an Livelihood Action Project of FAT with young girls from Bihar and
Jharkhand to enable them to become professional story writers. The training for story writting was done by Purwa Bharadwaj, and she edited and finalised the story in Hindi. The English translation of this story was done by an intern from TISS, Aqsa and final edits by Priyanka Sarkar.
- Log in to post comments