उम्मीद की रोशनी। Ray of Hope

 “बिटिया सारे घर में पंखे लगे हुए हैं तो तुम उसको छोड़कर बाहर में क्यों बैठी हो? इतनी गर्मी है।” आशिया के अब्बू अपने कुर्ते के हाथ का बटन लगाते हुए बोले! 

“अब्बू इस बाहर की दीवार पर बाजी ने जो सूरज की तस्वीर बनाई है वह मुझे कुछ सोचने का इशारा करती है. इसीलिए जब मुझे कुछ सोचना होता है तो मैं यहीं आकर बैठ जाती हूँ।”  आशिया अपने अब्बू से बोली.

आशिया के अब्बू हँसते हुए आशिया की बगल में आकर बैठ गए. और बोले – “क्या बात है मेरी गुड़िया रानी? अकेले आकर क्या सोच रही है? जरा हमें भी पता चले भाई!” 

आशिया मुस्कुराते हुए बोली – “जी अब्बू, क्यों नहीं ? जरूर। ये हमें अपनी अम्मी की याद दिलाती है. वह भी यहीं आकर कुछ ना कुछ सोचती थी।"

अब्बू कुछ गहरी सोच में डूब गए।

यह देखकर आशिया ने अब्बू से पूछा - “क्या आपको अम्मी की याद आ रही है?” 

“हाँ” - अब्बू बोले और वहाँ से चले गए. आशिया भी सीधे रसोईघर की ओर चली गई। शाम होनेवाली थी. जैसे ही उसने चूल्हा जलाया उसे याद आया कि आज तो इतवार है! ओह! वह अपना सर पकड़कर बैठ गई. बगल में खेलती हुई एक बच्ची से उसने पूछा – “क्या आज सच में इतवार है!”

बच्ची ने अपना मुँह बनाते हुए कहा – “हाँ. मेरा तो स्कूल भी बंद है. आज इतवार है सच्ची में।”

आशिया उसे देखती रह गई. आज इतवार है, सबको पता है।पर एक उसे ही नहीं पता। खैर, इस ख़याल को छोड़कर वह चाय बनाने चली. जैसे ही चाय का डब्बा उसने खोला, पता चला कि चाय पत्ती ही नहीं है। अब क्या करें? उधर अब्बू के चाय पीने का समय हो चुका था. उसके दिमाग में पहले यह नहीं आया था कि चाची के घर से चाय पत्ती माँग ले। फिर वह चाची से लाने चली गई. तब तक अब्बू रसोईघर के कितने चक्कर काट चुके थे। आशिया की किताब किनारे रखते हुए वे बोले – “आज चाय मिल जाएगी ना आशिया?” 

आशिया धीरे से बोली – “हाँ.” 

तब तक चाय बन चुकी थी. चाय देते हुए उसने अब्बू से पूछा - “क्या आपको और कुछ चाहिए?” , 

उसकी बात खत्म हुई भी नहीं थी कि सानिया बाजी आ गई. और पूछने लगी – “हमारी चाय किधर है?” 

आशिया बिना जवाब दिए वहाँ से चली गई!             ‌‌‌           

बाजी भी रसोईघर की ओर चली गई। चाय की चुस्की लेते हुए अब्बू से बाजी ने पूछा - “क्या हुआ है आज आशिया ‌को?”  

अब्बू हाथ धोते हुए बोले – “आज अपनी अम्मी को याद करके रो रही है।” 

यह कहते हुए वे जाने लगे। फिर जाते-जाते बोले – “सानिया, तुम आशिया का ध्यान रखना। और तुमदोनों बहनों को कुछ चाहिए तो बता दो. हम बाजार जा रहे हैं तो लेते आएँगे।” 

“कुछ नहीं चाहिए” - बोलते हए बाजी अपने कमरे की ओर चली गई! आशिया से पूछती गई कि आज के खाने में क्या बनाएँ। पनीर या आलू की पकौड़ी? जब आशिया का कोई जवाब नहीं आया  तो सानिया ने उसके में जाकर झाँका. आशिया अब्बू के कपड़े तहकर अलमारी में रख रही थी. फिर से बात करने पर भी उसने कोई जवाब नहीं दिया. सानिया अपने कमरे में चली गई।

इसी बीच अब्बू भी बाजार से आ गए. उन्होंने दोनों बेटियों को पुकारा  – “देखो तुम्हारे लिए क्या लाए हैं!” 

आशिया और सानिया खुश होते हुए अपने कमरे से बाहर निकलीं। दोनों बहनें अब्बू की बगल में आकर खड़ी हो गईं! आशिया के लिए बहुत सारे मिट्टी के खिलौने थे और सानिया के लिए लाल रंग का सुंदर सा दुपट्टा था।हर इतवार को अब्बू कुछ न कुछ दोनों को लाकर देते थे !  

अब्बू बोले – “क्या आज खाना हम बना सकते हैं?” 

सानिया ने कहा – “हाँ, पर आप क्यों बनाएँगे?”

अब्बू ने कहा – “क्या मैं खाना नहीं बना सकता? मैं तो रोज रात को खाना पकाया करता था। तुमलोग जब छोटी थी तब मैं ही बनाया करता था।”

यह सुनकर आशिया को विश्वास नहीं हुआ – “क्या सच में अब्बू?”

अब्बू हाँ में सर हिलाते हुए खाना बनाने चले गए। दोनों बहनें आपस में गपशप करने लगीं. उधर अब्बू का खाना पक चुका था। बर्तन में खाना परोसते हुए उन्होंने पुकारा – “आ जाओ सब, खाना खाते है,  रात बहुत हो गई है।” 

और सब खाना खाने लगे! फिर सो गए।

सुबह आँखें खोलते ही सानिया बोली – “आज तो बहुत अच्छी नींद आई.” कमरे से निकलकर वह सीधे गाय को चारा देने चली गई।

गाय का सर सहलाते हुए उसने कहा – “गोरी, आज तुम पूरा चारा खा के खत्म कर देना. नहीं तो कल से तुम्हें कम मिलेगा।” 

अब्बू जाग चुके थे. साइकिल निकालते हुए बोले - “मैं रायपुर जा रहा हूँ. आज वहीं जाकर सामान बेचूँगा।” 

आशिया का भी स्कूल का समय हो गया था और वो भी स्कूल के लिए चली गई।

सानिया अब घर पर अकेली थी. जैसे ही वह नाश्ता बनाने गई ठीक उसी समय उसकी बहुत पुरानी सहेली नीलिमा आ गई. नीलिमा ने आते ही पूछा -  “कैसी है सानिया? आजकल तो तुम कॉलेज नहीं आती हो?”

नीलिमा और सानिया सरकारी स्कूल में साथ पढ़ते थे. उसी समय से दोनों की दोस्ती है।

सानिया ने सबसे पहले नीलिमा से पूछा - “पहले बता कि क्या तूने नाश्ता किया है ?” 

नीलिमा ने ना में सर हिलाया. फिर दोनों ने साथ में मिलकर नाश्ता किया. बड़ी देर तक उनका हँसी मजाक चलता रहा। दोपहर का समय हो गया था,  गर्मी थी।

सानिया ने अपना पसीना पोंछते हुए नीलिमा से कहा – “मैं अभी तुरत आई। तू जरा घड़े में पानी डाल दे।” 

उस बीच सानिया के अब्बू वापस आ चुके थे. नीलिमा को देखकर खुश होकर उन्होंने पूछा - “अरे तुम कब आई जयपुर से?”

“कल ही आए हैं चाचाजी।” - पैर छूकर प्रणाम करते हुए नीलिमा बोली। “और चाचाजी आपका व्यापार कैसा चल रहा है?” 

सानिया को अपना चश्मा देते हुए अब्बू नीलिमा से बोले – “सब ठीक है!” 

फिर वे नहाने चले गए,  तभी उधर से सानिया ने पूछा - “क्या अब्बू हम गाँव घूम आएँ?”

“हाँ. क्यों नहीं? पर जल्दी आना बहुत धूप है.” 

बस क्या था ! सानिया और नीलिमा चली गईं।

सब कुछ अच्छा चल रहां था। अब्बू की मीट की दुकान थी।वे रायपुर की दुकान से ही मीट खरीदते और उसे लाकर अपनी दुकान में बेचते थे! उससे आमदनी ठीक-ठाक हो जाती थी. एक दिन अखबार पढ़ते हुए पता चला कि विदेश में कोरोना वायरस नाम की बीमारी है जो बहुत तेजी से फैल रही है. देखते-देखते बहुत सारे देश में यह बीमारी आ पहुँची. ऐसा लग रहा था कि इस  बीमारी ने पूरी दुनिया को उलट-पुलट कर रख दिया हो। हमारा भारत भी नहीं छूटा इससे. बहुत सारे लोग बीमारी का शिकार हो रहे थे। जब यह बीमारी लोगों को बड़ी संख्या में शिकार बनाने  लगी तो प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन की घोषणा कर दी। सुना कि अब 30 दिनों की तालाबंदी है। बताया गया कि अतिआवश्यक कामों को छोड़कर किसी चीज के लिए घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं दी जा रही है अब्बू यह सोचकर परेशान हो गए कि अब हमारी दुकान कैसे चलेगी। रोज कमाने से घर चलता था. अब क्या होगा, यह सोचकर सब और भी दुखी हुए।

सुबह सुबह जब अब्बू  दुकान पर बकरे की कटाई‌-छँटाई कर रहे थे तो एक सड़क चलते राही ने पूछा - “क्या चाचा आप मीट क्यों काट रहे हैं. इसे तो कोई नहीं लेगा. आप दुकान बंद करके चले जाइए।” 

सुबह से शाम होनेवाली थी, पर कोई मीट लेने नहीं आया. रोज इसी तरह गुजरने लगा. और आखिरकार एक दिन दुकान बंद करनी पड़ी. लोग इस बीमारी से इतना डर गए थे कि क्या कहें! किसी ने अफवाह उड़ा दी कि मीट में कोरोना वायरस है और उसे लोगों ने खाना बंद कर दिया. यह सब सोच-सोचकर अब्बू का सर बहुत दर्द हो रहा था, मानो फट जाएगा! आशिया और सानिया भी बहुत परेशान रहने लगीं. फिर आशिया ने सोचा कि यह समस्या तो रहेगी अभी. क्यों ना हँसी खुशी का माहौल बनाया जाए
काफी चिंता का माहौल बन गया था।

और फिर आशिया, सानिया वैसे ही रहने की कोशिश करने लगीं जैसे पहले रहा करती थीं. धीरे-धीरे यह अफवाह खत्म हो गई. अखबारों में भी इसके ऊपर छपने लगा. यह गलत साबित होने के बाद लोगों का डर खत्म हुआ और फिर से मीट की दुकान खुल गई. पहले तो उम्मीद ही छूट रही थी, लेकिन नए सिरे से उम्मीद जगी. आशिया और सानिया ने अब्बू को भरोसा दिलाया कि सब कुछ ठीक हो जाएगा. किसी को उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए। अब्बू ने दोनों को गले लगा लिया और मुस्कुराते हुए बोले कि आज मैं तुमदोनों के लिए अपने हाथ से मीट कोरमा बनाऊँगा। सुनते ही आशिया और सानिया का चेहरा खिल गया।

नीलम कुमारी, गिरिडीह, झारखंड द्वारा लिखित

यह लेख बिहार और झारखंड की युवा लड़कियों के साथ FAT के एक लाइवलीहुड एक्शन

प्रोजेक्ट का हिस्सा है, ताकि वे पेशेवर कहानीकार बन सकें। इन लड़कियों को पुरवा भारद्वाज ने कहानी लेखन का प्रशिक्षण दिया था, और उन्होंने हिंदी में कहानी को संपादित और अंतिम रूप दिया। इस कहानी का अंग्रेजी अनुवाद TISS के एक इंटर्न, अक़्सा द्वारा किया गया है और प्रियंका सरकार ने अंतिम संपादन किया है।

 

A Ray of Hope

 Aashiya, her father Mohammad Mian and her elder sister Sania, lived in a village. Mohammad Mian had a meat shop and they lived comfortably on that income. One day Mohammad Mian saw Aashiya sit outside and stare at their outside wall, which has a wall painting made by Sania. He went to her and asked, “My dear girl, there are so many fans in our house, why are you sitting outside? It is so hot.” 

“Abbu (father), this painting of a sun made by my elder sister on the outer wall, always helps me think. That is why when I have to think, I come and sit here." Aashiya said to her father. Aashiya's abbu sat next to her, and asked her what she was thinking about. Aashiya said with a smile that she was remembering her mother, that she remembered her mother also used to sit there and think. Aashiya then asked her abbu if he missed her mother as well. Her father told her that he remembered her mother quite often. 

After this Aashiya went about doing her household chores of making the evening tea for her father and sister, folding her father’s clothes and preparing for dinner. While she was working she suddenly remembered that it was Sunday. She was surprised that she did not remember that the day was a Sunday. To reconfirm she asked a young girl playing outdoors if it was really Sunday today! The girl said while making funny faces - "Yes. My school is closed. Today is actually Sunday.” Aashiya was very surprised, she forgot the day of the week. 

While making tea she realised that they had run out of tea leaves, so she went to her aunt’s house to get that. She gave tea to her father and her sister. While drinking tea abbu told her elder sister Saina that Aashiya was feeling sad today and was remembering her mother. On hearing this, Saina went to cheer up Aashiya, while their father went to the market.

Saina tried to start a conversation with Aashiya. She asked her about dinner preparations, but got no response from her. After some time, their abbu came back from the market with lots of clay toys for Aashiya and a beautiful scarlet scarf for Sania. This made them very happy. This was a ritual every Sunday, when abbu used to bring something for the sisters from the market. 

That evening, their father also prepared dinner for them. Both the girls were surprised. They never knew their father could cook. Mohammad mian told them that he used to cook food every night when the girls were small. 

The next day Sania went about her household chores, gave fodder to their cow, whose name was Gauri. Mohammad mian took his bicycle and went to Raipur to sell meat and Aashiya went to school. When Sania was making her breakfast, her childhood friend Neelima came over. Neelima and Sania studied together in a government school and were planning to join college after school completed. Neelima and her family live in the city now to earn their living. They both shared breakfast and kept talking about different things. When Sania's abbu returned back from Raipur, he also spent some time with the girls. Neelima told Mohammad mian that they had returned from Jaipur only yesterday and would be staying in the village for a while. After that Sania and Neelima went for a walk in the village. They were happy to be together after a long time. 

Soon after this, while reading the newspaper, they came to know that there was a disease called Coronavirus which was spreading very fast all over the world. This disease was getting transmitted all over the world, and was slowly changing the way people lived their lives around the whole world. India was also affected by this virus. Many people were falling sick because of this disease. When this disease started affecting a large number of people in the country, our Prime Minister announced a nationwide lockdown. They heard that it would be a 30-day lockdown. It was mentioned that no one was allowed to go out of the house for anything except urgent work.  Mohammad Mian got upset thinking he would have to keep the shop closed. The family was surviving on daily income from the meat shop. Everyone was unhappy.

Some days later, when Mohammad Mian was cutting a goat at the shop, a passerby asked him - "Uncle, why are you cutting meat? No one will take it. You close the shop and go away." And actually that day, till evening, no one came to buy meat. Everyday thereafter was the same. And finally one day the shop had to be closed. People were really scared of this disease. Someone sparked a rumor that meat contained the corona virus and people stopped eating meat. People were so scared of this disease. Thinking about all the loss and no other means to support the household, Mohammad mian was always feeling sad and helpless. Aashiya and Sania also started getting very upset. 

Then Ashiya thought that as the problem would remain for some time, why not try and create an atmosphere of laughter and happiness to beat the stress. Therefore, Aashiya and Sania tried to live like they used to live before. Gradually the rumor around meat being infected came to an end. It started appearing in newspapers too, that this was indeed a rumour and had no truth in it. Slowly the meat shop started opening again and a renewed hope bloomed within the family. Aashiya and Sania assured their abbu that everything would be alright. Nobody should give up hope. Abbu hugged both of them and smilingly said that he will make meat korma (curry) for them. Aashiya and Sania's face blossomed with joy as soon as they heard this.

Written by Neelam Kumari, Giridih, Jharkhand

This article is part of an Livelihood Action Project of FAT with young girls from Bihar and

Jharkhand to enable them to become professional story writers. The training for story writting was done by Purwa Bharadwaj, and she edited and finalised the story in Hindi. The English translation of this story was done by an intern from TISS, Aqsa and final edits by Priyanka Sarkar.