उम्र छोटा काम बड़ा I Big Task At A Young Age
नन्हीं सी है प्यारी सी है | उम्र भले ही छोटी पर सहासी उतनी ही बड़ी है
एक 14 वर्ष की लड़की है।उसका नाम शिवानी कुमारी है।वह झारखंड के एक छोटे से शहर में रहती है।अपने घर के पासवाले सरकारी स्कूल में कक्षा 8 में पढ़ती है।शिवानी की मम्मी स्कूल में साफ-सफाई का काम करती है और पिता कपड़ों की दुकान में काम करते हैं।
अभी पूरी दुनिया में कोरोना वायरस का कहर छाया हुआ है और सबको इससे बचने के लिए कुछ सावधानी बरतने की जरूरत है। याद करके साबुन से 20 सेकंड तक हाथ को अच्छे से धोना और मास्क लगाना, साफ-सफाई से रहना ज़रूरी है।पर इस बीमारी की जानकारी शुरुआत में बहुत कम लोगों को थी।
जैसे ही इस बीमारी के कारण पूरे देश में लॉकडाउन हो गया और अचानक सब लोग अपने घर में बंद हो गए, वैसे ही सबको मदद की जरूरत महसूस हुई। यह वो समय था जब ज़रूरतमंद ज्यादा और मददगार कम थे। तब शिवानी एक मददगार के रूप में उभरी थी। उसे हमेशा से लोगों की मदद करना बहुत अच्छा लगता है। उसे फिर यह एक मौका मिल गया था। सरकार ने जब स्कूल द्वारा स्कूल के छात्र-छात्राओं को साबुन और पैड वितरण करने का निर्णय लिया तो शिवानी सबसे पहले मदद करने पहुँच गई। अपने शिक्षकों और शिक्षिकाओं के साथ मिलकर उसने सभी को बच्चों को साबुन दिया। लड़कियों को साबुन और पैड दोनों दिया गया। यह लॉकडाउन के बीच की बात है। जब जिला प्रशासन की तरफ से कोई चीज़ वितरण को आती थी तब कुछ शिक्षक और बच्चे भी स्कूल आते थे।
सभी छात्रा स्कूल नहीं आ पाती थी। खासकर छोटी माने जानेवाली जाति की। उन छात्राओं तक पैड नहीं पहुँच पाता था। उनका घर दूर था। वो गाँव की तरफ से आती थीं। उन तक इसकी जानकारी नहीं पहुँची थी। पर कोरोना के समय में जरूरत तो सबको थी। ऐसे में शिवानी और उसकी कुछ सहेलियों ने फैसला लिया कि जो लड़कियाँ स्कूल तक नहीं आ पाई हैं उन तक हमलोग जाएँगे। अपने दोस्तों के साथ और अपने शिक्षक से अनुमति लेकर शिवानी चल पड़ती है। बारी-बारी से सबको साबुन और पैड देती है। उस दौरान अपनी सुरक्षा का भी वो बहुत अच्छे से ध्यान रखती है। अपने दोस्तों से भी इन नियमों का पालन करवाना उसका जिम्मा था।
गाँव में सबको साबुन और पैड के साथ कोरोना वायरस के बारे में भी बताना बड़ी बात है। शिवानी इतना बड़ा काम आराम से कर रही थी। न कोई झिझक न शरम। एक अलग ही उत्साह और निष्ठा से वह अपना काम किए जा रही थी। आमतौर पर देखा जाए तो पैड को लेकर बात करने में लडकियाँ शरमाती हैं, पर शिवानी इत्मीनान से अपने शिक्षकों से जानकारी इकट्ठा करती और अपने दोस्तों के साथ साझा करती थी। यही नहीं, अपने परिवार के साथ भी जानकारी को साझा करती थी जो उस समय में बहुत ही महत्त्वपूर्ण था।
शिवानी साहसी तो थी ही, होनहार भी थी।उम्र छोटी है, पर उसका काम उतना ही बड़ा है। शिवानी की जिंदगी में भी कोरोना का असर हुआ। जिस परेशानी से उसका परिवार दूर हुआ था, वह इस लॉकडाउन के कारण वापस आ गई। कुछ सालों पहले शिवानी के पिता को एक रिश्तेदार के पास दिल्ली भेज दिया गया था। उनकी बुरी आदत थी शराब पीने की और पी कर घर में मार-पीट, गाली-गलौज करने की। वो अब फिर वापस आ गए थे। शिवानी और उसका परिवार उनसे परेशान रहने लगा था। वे घर पर दिन भर रहते थे। शराब पीकर अपने माता पिता से लड़ाई-झगड़ा करते थे! फिर अपनी पत्त्नी को और बच्चों को गाली देना, मार पीट करना शुरू कर देते थे।
एक दिन शिवानी की मम्मी काम पर से घर आई और उसके पिता गाली देने लगे। बात बढ़ गई। शिवानी के पिता ने उसकी मम्मी को बहुत बुरी तरीके से पीटा। वह काफी घायल हो गई तो घरवाले बगल में ही रहनेवाले डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर बोले कि चोट काफी लगी है। मलहम पट्टी लगानी होगी। उस समय शायद किसी को घरेलू हिंसा कानून का ख्याल नहीं आया। कोई शिकायत दर्ज नहीं हुई और इलाज होने के बाद शिवानी की मम्मी घर आ गई। घर में इतना लड़ाई-झगड़ा देखकर बच्चे डर गए थे। कोरोना और लॉकडाउन के कारण यह हिंसा सब झेल रहे थे।
इस तरह 3 महीने बीत गए और अब बात बिगड़ती जा रही थी। शिवानी के दादा दादी भी अब बहुत परेशान हो गए थे। लगातार 3 महीनों से रोज लड़ाई-झगड़ा, मार-पीट होने से सब बहुत ही चिंता में थे। अब क्या किया जाए? शिवानी की माँ भी कमजोर होती जा रही थी। बच्चों पर भी बुरा असर हो रहा था। ना तो उनको अच्छा भोजन मिल पा रहां था, ना ही अच्छा माहौल था जिससे बच्चे पढ़ाई भी कर पाएँ। बात बिगड़ते देखकर सबने सोचा कि इसका तो कुछ करना होगा।
शिवानी ने सोचा कि जैसे पापा को पहले बाहर भेज दिया गया था, वैसे ही इस बार भी कुछ किया जाए। क्यूं ना उनको गाँव भेज दिया जाए! इसके लिए शिवानी ने अपने दादाजी से बात की – “वहाँ गाँव में खेत भी है। और गाँव ज्यादा दूर भी नहीं है। आप बगलवाले चाचा जी को बोलिए कि वो अपनी गाड़ी से पापा को गाँव छोड़ आएँ। वहाँ पापा कुछ खेती का काम करेंगे तो अच्छा रहेगा। और यहाँ लड़ाई झगड़ा भी नहीं होगा।”
दादाजी सोचते हैं कि शिवानी बात तो सही कह रही है। शिवानी के दादा-दादी आपस में बात करते है कि अपना ही बेटा है। इसको तो सजा भी नहीं दिलवा सकते हैं, ना ही और कोई उपाय है। शिवानी ने जो कहा है वो सही ही है। हमलोग उसे गाँव भेज देते है। वहाँ खेती का काम करेगा तो कुछ कमाई भी हो जाएगी और यहाँ शांति से सब रह पायेंगे। हमलोग की लाख कोशिश के बाद भी इसकी शराब पीने की आदत नहीं छूट रही तो क्या कर सकते हैं?
दूसरे दिन शिवानी के पिता को गाँव जाने के लिए बोला जाता है। पर वो इनकार कर देते हैं। शाम को शराब पीकर घर आते हैं और फिर से हंगामा करने लगते हैं। उस समय घर पर सिर्फ शिवानी और उसकी माँ होती है। माता-पिता को लड़ते देखकर शिवानी घबरा जाती है। उसके पिता शिवानी की मम्मी को बुरी तरह पीट रहे थे। शिवानी से यह देखा नहीं जाता है। बहादुरी से बाहर निकल कर वह लोगों को इकट्ठा कर लेती है। लोग बीच-बचाव करके उसकी माँ को बचाते हैं। बाद में उसके परिवारवाले आते हैं और सीधा उसके पिता को गाँव भेज देते हैं। इस तरह शिवानी अपनी सूझ बूझ से माँ को बचा लेती है। फिलहाल सब लोग चैन की साँस ले रहे है। और पिता भी गाँव में अच्छे से रह रहे हैं!
लक्ष्मी शर्मा, गिरिडीह, झारखंड द्वारा लिखित
यह लेख बिहार और झारखंड की युवा लड़कियों के साथ FAT के एक लाइवलीहुड एक्शन
प्रोजेक्ट का हिस्सा है, ताकि वे पेशेवर कहानी लिखने का अनुभव पा सके। इन लड़कियों को पुरवा भारद्वाज ने कहानी लेखन का प्रशिक्षण दिया था, और उन्होंने हिंदी में कहानी को संपादित और अंतिम रूप दिया। इस कहानी का अंग्रेजी अनुवाद TISS के एक इंटर्न, अक़्सा द्वारा किया गया है और प्रियंका सरकार ने अंतिम संपादन किया है।
She is small, she is lovely | She may be young but she is fierce
Written by Laxmi Sharma, Giridih, Jharkhand
This article is part of an Livelihood Action Project of FAT with girls from Bihar and
Jharkhand to give them an experience of writing stories professionally. The training for story writting was done by Purwa Bharadwaj, and she edited and finalised the story in Hindi. The English translation of this story was done by an intern from TISS, Aqsa and final edits by Priyanka Sarkar.
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