आत्म निर्भरता का पहला एहसास: That first feeling of self-confidence

दीपिका पासी 

काफी दिनों से वडोदरा ( गुजरात ) जाने की बात हो रही थी। जब गायत्री ने बताया कि मुझे वडोदरा जाना है, वो भी 15 दिनों के लिए, तो मैं बहुत खुश हुई| ऐसा लग रहा था मानो मैंने अपनी मंजिल की ओर एक और कदम बढ़ाया हो| मुझे अंदर से बहुत अच्छा और संतुष्ट महसूस हो रहा था। लेकिन इससे पहले मैं वडोदरा जाऊँ, मुझे घर में भी बताना था और घरवालो की अनुमति लेनी थी। जहाँ मैं इतनी खुश थी, वहीं मेरे अंदर एक डर भी था की कहीं घरवालों ने मना कर दिया तो मैं क्या करुँगी| लेकिन  मेरा मन भी कहाँ रुकने वाला था! बस यही सोचने लगी कि अगर उन्होंने मना कर दिया तो मैं उन्हें समझाउंगी कि मैं अब बड़ी हो गई हूँ| कब तक आप लोग मेरे साथ रहोगे? कभी न कभी तो मुझे अकेले ही रहना है, अकेले बाहर निकलना है| अगर मैं अभी से ये सब सीखूँगी तो मेरे लिए ही अच्छा रहेगा| साथ ही साथ मन में यह भी सोचा कि उनसे कहूँगी कि मैं कुछ करना और बनना चाहती हूँ |मैं चाहती हूँ लोग मुझे जाने। मैं यह भी चाहती हूँ कि मैं लड़कियों को कैमरा सिखाऊँ।

जब यह बात मैंने घर में बताई तो मम्मी ने तो हाँ कर दी लेकिन भाई को अब भी बताना था| समझ नही आ रहा था कैसे बताऊँ और वो क्या कहेगा| एक या दो दिन की बात नही थी, पूरे 15 दिन! मुझे भी पूछने में इसलिए डर लग रहा था क्योकि मैं कभी भी इतने दिनों के लिए घर से बहार नही रही थी। जैसे तैसे अपने अंदर हिम्मत इकट्ठा कर के, अपनी मम्मी को सामने बैठा कर, मैंने अपने भाई से पूछ ही लिया| और भाई ने भी हाँ कर दी| उस समय मुझे लगा जैसे मैंने कोई बहुत बड़ी लड़ाई जीत ली हो| मेरी खुशी कि कोई सीमा नहीं थी| मन में बस यही चल रहा था कि अब मैं बड़े आराम से जाउंगी और पूरी लग्न से अपना काम करुँगी।

मैं वडोदरा पूजा पंत के साथ जा रही थी, जो हमारे अर्लि मैरेज (जल्द शादी) प्रोजेक्ट में हमारी मीडिया ट्रेनर है| मैं वहाँ हॉस्टल में दो और लड़कियों के साथ रुकी| पूजा ने मुझे तीन दिन वहाँ मेंटर किया, देखा कि मैं कैसे सीखा रही हूँ| मैंने खुद भी उनसे वहाँ बहुत कुछ सीखा। मुझे इस तरह की फीडबैक की ज़रूरत भी थी| मुझे अंदर से बहुत ख़ुशी थी की कोई है जो मुझे देख रहा है और बता रहा है मैं केसा कर रही हूँ। मेरी जिंदगी में यह एक एहम परिवर्तन था—कोई मेरे पढ़ाने को गौर से देख रहा था जब्कि मैंने फैट में अपनी शुरुआत एक स्टूडेंट के तौर पर की थी—इस एहसास का मज़ा ही कुछ और था|

जिस दिन पूजा और मैंने लड़कियों की पहली क्लास ली, उस दिन वहाँ की लड़कियों के साथ हमने एक जान पहचान की गेम खेली| इस गेम मैं हमें अपने नाम के साथ साथ अपनी एक पसंदीदा चीज कर के बतानी थी| सभी लड़कियों को इस गेम में बड़ा मजा आया। इसके बाद पूजा और मैंने लड़कियों को पेपर की परचियाँ दी जिसमें लड़कियों को अपनी आशाएँ, उम्मीदें और चुनौतियां लिखने को कहा गया। सब ने उसे बड़े से बोर्ड पर लगा दिया | 

जान पहचान बनाने के बाद, हमने लड़कियों को कैमरा दिया और उन्हें कहा कि अब वे पोट्रेट फोटोस खीचें| लड़कियों ने फोटोग्राफी में अपना पहला कदम बढ़ाया| उन्हें कैमरा को उपयोग करने में बहुत मजा आ रहा था| बहुत सारी तसवीरें खींची और फिर सभी लड़कियों ने एक दूसरे के द्वारा खींची गयी तसवीरें देखी। दिन खत्म होने पर जब मैं वापस अपने हॉस्टल पहुंची तो मेरे बाकी रूम्मेटस वापस आ गई थी| मैंने उनसे भी काफी सारी बातें करी| अपने बारे मे बताया,यह भी शेर किया कि मैं किस काम से वडोदरा आई हूँ  और कहाँ से आई हूँ। जब लड़कियों ने दिल्ली का नाम सुना तो मुझसे पूछा  की आपको  उस शहर में डर नहीं लगता? बातों बातों में रात हो गयी और मैंने पहली बार घर से दूर कहीं अकेले सोने का इंतेजाम किया| नए जगह में, दोस्तों और घरवालों से दूर नींद तो नहीं आ रही थी, फिर भी किसी तरह मैं सो गयी| सुबह तैयार हो कर मैं दूसरे दिन सहियार के लिए निकली|

पूजा और सहियार के लोगों से बातचीत करने के बाद, हमने तय किया कि लड़कियों के स्कूल के टाइमिंग के अनुसार हमें कैमरा क्लास दो बार लेनी होगी—सुबह 10 से 12 और दिन में 3 से 5। लड़कियों ने आना शुरू कर दिया और पहली क्लास में मैंने उन्हे कैमरा के इतिहास के बारे में बताया। लड़कियों के लिए यह बिलकुल नया ज्ञान था जो उन्हे बहुत ही दिलचस्प लगा| इन सब के बीच बस एक ही समस्या  थी: ज्यादातर लड़कियां गुजराती बोलती थी और मैं ठहरी हिंदीभाषी| इस मसले को सुलझाने के लिए हर क्लास में कोई न कोई रहता था जो उन्हें गुजरती में बता सके और उनके सभी सवालों का जवाब गुजराती में दे सके| इस मामले में सरोज, रेशमा जी, जागृति और द्रुवि ने खासकर मेरी मदद करी|

तीन दिन के बाद पूजा चली गयी और अब सारी ज़िम्मेदारी मुझ पर आ गयी| बहुत अजीब लग रहा था और डर भी कि मैं अकेले कैसे सब कुछ संभालूँगी| साहियर में कैमरा क्लास को आगे बढ़ाते हुए मैंने अब उन्हे कैमरा शॉट्स के बारे में बताया| लड़कियों को कैमरा दे कर बहार भी भेजा| इस तरह के फील्ड वर्क से वे बेहद खुश थी| तस्वीरें खींचना, शॉट्स लेना और एक दूसरे के काम को देखना उनका पसंदीदा काम था| एक दिन मैंने समुदाय विजिट (community visit) किया और सारी लड़कियों के घर गई जहाँ मैं उनके परिवार से मिली और उनसे अपना परिचय करवाया| अपने काम और उत्साह (फोटोग्राफी) के बारे में उन्हे भी समझाया। लड़कियों के माँ-बाप बहुत खुश थे कि मैं इतनी दूर से उनकी लड़कियों को कुछ सिखाने आई हूँ| 

लड़कियों से जब जल्दी/जबरन शादी और भेद भाव पर बात की, तो मुझे यह लगा कि उनकी समझ इस मुद्दे पर कम है| बहुत सारे उदहारण और अपने खुद की कहानी बताकर मैंने उन्हे समझाया| मुद्दे पर जब उनकी समझ और मजबूत हुई तो उन्हें बताया कि उन्हे इन्ही मुद्दों को तस्वीर के रूप में दर्शना है| फोटोस लेते वक्त इन्ही चीजों को ध्यान में रखना है। यह एक नया विषय था लड़कियों के लिए और वे धीरे धीरे इसे और नजदीक से समझने की कोशिश करने लगी। पर उनका एक ही सवाल था: हम इसे फोटोज के जरिये या तस्वीर के माध्यम से कैसे दिखा सकते हैं? इस बारे में हमने और चर्चा की और पता चला कि जल्द शादी का प्रचलन कई लड़कियों के घर के आस पास हुआ है जहां कम उम्र में लड़कियों की शादी कर दी जाती है। अपनी समझ को और बढ़ाने के बाद लड़कियों में थोड़ा आत्म-विश्वास जागा और उन्होने अपना हथियार उठाया: कैमरा! उन्हे घर ले जाने के लिए कैमरा दिए गए| लड़कियों ने आपस में फोटोज खींची; कोई लड़का बना कोई लड़की बनी| कोई माँ और कोई पिता| लड़कियों ने बाल विवाह  को गंभीरता से दर्शाने के लिए खुद माँ बाप का रूप धरण कर लड़के और लड़की की शादी करवाई और इस पूरे नाटक की फोटोज खींची|

इन पंद्रह दिनों में मुझे कई बार घर और घरवालों की बहुत याद आई| घर के बाहर रहने से खिन्न (homesick) हुई और एक-दो बार रोयी भी| घरवालों से बात कर के पता चला कि वे भी मुझे बहुत याद कर रहे थे| इसी तरह सहियार में कब वक्त बीत गया, पता भी नहीं चला| लड़कियों के साथ मेरा आखरी दिन था| सोचा उनके साथ पार्टी किया जाए और उन्हे सर्प्राइज़ दिया जाए| हमने लड़कियों को कहा कि वे शनिवार को साडी पेहेन कर आयें और हम गाने चला कर डांस करेंगे। सर्प्राइज़ ये था कि उनके लिए हमने केक और कुछ खाने का सामान भी मंगाया  था| लड़कियां काफी हैरान हुई और फिर खूब मज़े में हम सब ने पार्टी की  और उन्हे एक आखरी बार बाय बोला| लड़कियां गले लग कर रोने लग गई और ना जाने की बातें करने लगी| मन तो नही कर रहा था आने का; लगा थोड़े दिन और रुक जाऊँ| लेकिन घर की भी याद आ रही थी| मैंने उनसे कहा कि मेरे घर में सब मुझे याद कर रहे हैं और मैं भी उन्हें बहुत याद कर रही हूँ  तो जाना तो पड़ेगा ही| उनसे फिर मिलने का वादा कर के मैं वहाँ से निकली| 

ट्रेन में पहली बार मैं अकेले सफर कर रही थी| बहुत बेसबरी से इंतजार कर रही थी कि कब ट्रेन में बैठूँगी और कब घर पहुँचूँगी। मुझे स्टेशन छोड़ने के लिए सहियार की दीपिका और उनके पति आये थे| वह मुझे ट्रेन में बैठा कर चले गए। अब मैं ट्रेन में सबके साथ होकर भी अकेली थी| पर अकेले होकर भी भरी ट्रेन में लोगो से बात करना, बाकी यात्रियों को देखना, कुछ न कुछ खाते रहना: इस सब में इतना मजा आ रहा था कि क्या बताऊँ! जब दिल्ली करीब आने लगा, एक एक मिनट एक एक घंटे जैसा लगा| अपने दोस्तों और घरवालों से मिलने के लिए बेचैन थी| 

स्टेशन पर मुझे लेने मेरे दोस्त आए थे| इतने दिनों बाद उनसे मिलकर बेहद खुशी हुई| उनके साथ थोड़ा वक्त बिताया और फिर फैट आ गई| फैट मैं सब से मिलने के बाद भाई को फोन किया तो भाई मुझे लेने आया| भाई भी मुझे देख कर खुश था लेकिन बता नही रहा था| पर में जान गई थी| वो मुझे घर लेकर गया| जाते ही घर का खाना खाया और सुकून मिली। मैंने घर में सबको बताया: गुजरात के बारे में, वहाँ का मीठा खाना, वहाँ का महोल, वहाँ का मौसम और लड़कियों के संग मेरा अद्भुद अनुभव| सभी को अपने इस सफर और अनुभव के बारे में बताने में मुझे अपने आप पर बड़ा गर्व महसूस हुआ| मेरा अनुभव कुछ इस तरह रहा: जहां काम के साथ साथ मैंने खूब मजा और मस्ती की। कई ऊमीड़ें, अरमान और आत्म विश्वास के साथ लौटी| इस अनुभव को मैं सदा याद रखूंगी|


 

By Deepika Passi

I had been hearing about going to Vadodara (Gujarat) for a while now. When Gayatri informed that I have to go there for 15 days, I was delighted. It felt like I had taken another step forward towards my goal. I was feeling extremely happy and content from inside. However, before I could head to Vadodara and live my dream, I had to talk to my family and seek their permission. While I was elated, I was also scared thinking about the possibility of my family not allowing me to go. I wondered what would I do if that were to happen. Nevertheless, I knew my heart and mind was set. I knew I wasn’t going to listen to anyone. I started thinking about what I'd tell them if they say no. How long would you be there with me? At some point, I will have to live on my own, traveling and going out alone. If I learn this independence now, it will only be good for me. I also told myself that I would tell them that I want to do something and become someone. I want people to know me. I also want to teach camera and photography to girls. 

When I finally told this at home, my mother agreed but I had still not told my brother. I was not sure how to tell him and what he would say. It wasn’t a matter of just 1 or 2 days but 15 days! I was also scared to tell him because I myself had never lived away from my home for such a long period. Somehow, I mustered enough courage and asked my brother in the presence of my mother. He said yes! At that moment, I felt like I had just won a great war. My joy knew no bounds. All I could think was going and working as diligently and smoothly as I can.

I was going to Vadodara with Pooja Pant, our media trainer for the early marriage project. I was staying in a hostel sharing the room with a few other girls. For three days, Pooja mentored me there and observed how I teach the girls there. I myself learned a lot from this exercise. I needed this kind of feedback to improve my own teaching skills. I was really happy and thankful that there was someone who was watching me closely, and, telling me how I was doing. This was a significant changing point in my life—to be observed by someone on my teaching when I myself began my journey at FAT as a student—and the thrill of experiencing it was amazing.   

The day Pooja and I took the first class, we played an ice-breaking game to know each other better. In this game, each one of us had to tell our names and do something that we liked. All the girls enjoyed playing this game very much. After this, Pooja and I gave sheets of paper to the girls for them to write their hopes, expectations and challenges with these classes. These sheets were neatly pinned on the board so everyone could see and learn from them.

After getting to know each other a little more, we gave camera to the girls and asked them to click some portrait shots. The girls took their first step towards the world of photography! They were really enjoying using a camera (for the first time). Many pictures were clicked, after which the girls examined each other’s photographs. After the day ended, I went back to my hostel again, where my roommates had arrived. I spoke to her a lot, told her about myself and shared why I was in Vadodara and where I had come from. When my roommates heard that I had come from Delhi, they asked how come I wasn't afraid of that city. With such conversations, I didn't realize that it was nighttime already. I prepared to sleep so far away from my home for the first time in my life. In a new place, away from my friends and family, sleep eluded me but I somehow managed to catch some rest. The next morning, I got ready to leave for Sahiyar again.

After talking to Pooja and the folks at Sahiyar, we decided to hold the camera classes in accordance with the girls’ school timings—twice a day from 10am-12pm and 3-5pm. The girls began coming regularly and in my first official class, I taught them all about the history of camera and photography. This was completely new information for the girls, which they found interesting. However, there was just one problem: language. Most of the girls spoke Gujarati while I was more comfortable in Hindi. To resolve this, someone or the other would always be present in the class to help clear any doubts in Gujarati. Saroj, Reshma, Jagriti and Dhruvi especially helped me in this regard.

After three days, Pooja left giving me all the responsibility. It felt weird and scary and I wondered how I would manage it all alone. Carrying the camera classes forward, I taught the girls about camera shots. The girls were also given cameras to take it outside for fieldwork. They really enjoyed these kinds of exercises and felt happy to click pictures, capture shots and look at each others’ work and learn from them. I also did community visits one day and visited some girls’ houses, met their families and introduced myself to them. I explained all about my work and my enthusiasm (photography). The girls’ parents were very happy to meet me and note that I had come from so far to teach something to their daughters.

When I spoke about early and forced marriage and gender discrimination with the girls, I felt they needed help to engage with the issue, as their grasp on this subject was little. I explained the nuances of it with several examples as well as using my own story to illustrate contextual realities better. When their understanding on the issue was slightly stronger, I told them to use photography to highlight this issue well; that while clicking pictures, this issue needs to be kept in mind. This was a new topic to deal with for the girls and they started to understand this gradually and in a more closed and critical way. However, they all had the same question: how do we highlight this using the medium of photos? We discussed on this some more and came to know that the girls had witnessed and experienced instances of early and forced marriage in and around their own neighbourhood, where they had seen girls being married off at an early age. After strengthening their own grasp on this issue, their self-confidence increased and they picked up their weapon: the camera! They were allowed to take the camera home where they enacted scenes from a marriage. They clicked each other as they played roles of the bride, the groom and the bride and groom’s parents. To highlight the critical issue of child marriage, the girls themselves played roles of the mother and the father and enacted the marrying away of their children. This entire role-play was clicked and captured on camera.

In these 15 days, I missed my home and family the most. I was homesick often and even cried on some occasions. After speaking to my family members, I realized that they were missing me too. Just like that, time flew in Sahiyar. And, suddenly, it was my last day with the girls. I thought of throwing them a small, surprise party. I told the girls that on Saturday, they are supposed to wear saris and we would sing and dance together. The surprise was cake and snacks that we had ordered for everyone. The girls were pleasantly surprised and enjoyed the party before it was time to bid goodbye. The girls were hugging and crying, forbidding me to go back. My heart reached out to them and I did not really want to go. But how could I have stayed? I explained to them that my family members were missing me and so was I. Promising to meet them again, I bid them an emotional farewell. 

This was the first time I was travelling alone on a train (Pooja had accompanied me on my way to Vadodara). I was excited and restless to board the train and reach home safely. Sahiyar’s Deepika and her husband had accompanied me to the station to see me off. Now, I was with several passengers in the train and yet alone. But, despite being alone, I spoke to my co-passengers, observed other travelers, ate something or the other: there was so much fun in doing all of this! As the train was nearing New Delhi, every minute seemed like an hour. I was restless to meet my friends and family.

My friends had come to receive me at the station. It felt amazing to meet them after so long. I spent some time with them and then went to FAT office. After meeting everyone at FAT, I called up my brother who came to pick me up. Even he was happy to see me but he did not say anything. But I knew it and could see the happiness on his face. He took me home and the first thing I did was to eat homemade food that satisfied me immensely. I told all about my trip to everyone in my family. About Gujarat, its sweet food, the atmosphere there, the weather and my amazing experience with the girls. Narrating all these stories, I felt very proud of my achievements and myself. My entire experience could be summed up like this: a place where along with working, I enjoyed and had a lot of fun. I returned with a lot of hopes, aspirations and self-confidence. I will always remember this experience with much fondness.  

Deepika Passi is a Tech Center alumni who is currently a fellow with FAT working on using photography as a medium to convey issues around gender. She was recently in Gujarat teaching camera and photography to the girls at Sahiyar: Stree Sangathan. To know more about FAT’s partnership with Sahiyar, click here. Deepika is also an intern engaged in the early marriage project. To read more about the collective fight against early and forced marriage, click here.

Edited and translated by Deepa Ranganathan.