स्टूडेंट से ट्रेनर: एक अद्भुत सफर: From a student to a trainer: an amazing journey
ऐसे तो मुझे अच्छा ही लगता है अपने घर से दूर रहना क्योंकि घरवाले हर बात पर रोक-टोक करते हैं| चाहे उस काम में खुद की मर्ज़ी हो ना हो, उसे करना ही पड़ता है| अभी कुछ दिनों पहले मैं फैट की तरफ से गुजरात के एक शहर वडोदरा गई| वहाँ सहियार नमक एक संस्था में किशोरियों को कैमरा व फिम्मकिंग सीखाना मेरा काम था| सहियार वडोदरा में लगभग 20 साल से काम कर रही है, खासकर महिला अधिकार पर| हालांकि यह मेरा पहला अनुभव नही है, इससे पहले में दिल्ली में उधयम नमक एक संस्था के किशोर-किशोरियों को कम्प्युटर सीखाने गई हूँ, पर कभी अपने शहर से बाहर नही गई थी| इसलिए यह अनुभव बहुत ही खास और दिलचस्प रहा।
मैं पहली बार रेलगाड़ी से अकेले सफर करने वाली थी। वो भी दिल्ली से बहुत दूर: गुजरात। मैं बहुत ही खुश थी पर अंदर से उतना ही डर भी लग रहा था| किसी दूर और दूसरे शहर में जाकर वहाँ की किशोरियों को पढ़ाना था; इतना आसान नहीं था| रात के 10 बजे की गाड़ी पकड़कर मैं अगली सुबह वडोदरा पहुंची| एक नई जगह में मैं अकेली थी| मैंने ऑटो लिया और सीधा हॉस्टल पहुंची| हॉस्टल उन लड़कियों के लिए था जो नौकरी करती हैं और किसी दूसरे शहर से आकार वडोदरा में अब स्थित हैं| वहाँ की कार्यभारी खुशबू से मिली जो हॉस्टल में सभी चीज़ों की देखभाल कर रही थी| उनसे अपने खाने और कमरे के बारे में पूछा और 12 दिन का टिफ़िन लगवाया|
गुजरात के हर खाने में मीठा होता है| यहाँ तक की दाल भी हल्की मीठी होती है| पहली बार मैंने जब वह खाना खाया तो सब कुछ मीठा सा लगा| पहले कभी दाल और सब्जी इतनी मीठी नही खाई थी| इस तरह के खाने की आदत मुझे नहीं थी और इसलिए मैंने टिफिन वाली आँटी को कहा कि दाल और सब्जी में मीठा कुछ न डाले! मैं अपना कमरा और लड़कियों के साथ शेर कर रही थी| उनसे थोड़ी बातचीत करने के बाद मैं बाहर घूमने निकली| शहर का उतना अच्छा अंदाज़ा नही था तो मैं ज्यादा दूर नही गई|
अगले दिन से सहियार में मेरी क्लास थी| मैंने रात में बैठकर पाठ्यक्रम (curriculum) तैयार किया| पहली बार पाठ्यक्रम अपने आप बनाया था बिना किसी से पूछे| बहुत परेशानी हुई| समझ नहीं आ रहा था कि दो घंटों में कैसे बनाऊँ| जैसे-तैसे पाठ्यक्रम बनाया और अपनी क्लास लेने के लिए तैयार हुई। मुझे पाठ्यक्रम बनाने में तीन घंटे लगे और किशोरियों की मैंने 12 दिन कक्षाएँ ली| बहुत ही अलग और सुनहरा अनुभव रहा| कुछ किशोरियों को ठीक से हिन्दी बोलनी नही आती थी| मैं सोच रही थी कैसे बात होगी पर कुछ दिनों बाद मुझे गुजरती थोड़ी बहुत समझ आने लगी| गुजरती इतनी भी कठिन नही थी| मैंने अपने दिमाग मे पूर्वधारणा बना ली थी कि इसे बोलना और समझना बहुत कठिन होगा| गुजरती में हिन्दी के कुछ मिले-जुले शब्द भी थे|
हमने क्लास के साथ-साथ बहुत मस्ती भी की! किशोरियों को एक्टिविटी के जरिये समझाया की जेंडर क्या होता है| क्या वह लिंग से अलग होता है? यदि हाँ तो कैसे? हम जेंडर से किस तरह बंधे हुए है| हर दिन एक नई सोच के साथ जाना और किशोरियों को फोटोस के माध्यम से कुछ ना कुछ सीखाना: मुझे यह बहुत ही आनंदमय लगा| मुझे वह दिन याद आया जब मैं खुद टेक सेंटर में स्टूडेंट के रूप में कक्षा लेती थी| मैं सभी को बहुत परेशान करती थी| हर एक सवाल के साथ एक और सवाल तैयार रहता था| पर सभी मेरे सवालों का जवाब प्यार से देते थे| वहाँ जो भी मैंने देखा, वही मैंने यहाँ सीखाया|
किशोरियों के साथ मेरा अनुभव काफी मज़ेदार था| किशोरियाँ बहुत ही मिलनसार थी| हम सभी बहुत जल्द अच्छे दोस्त भी बन गए| वे अपने घरों से मेरे लिए खाना बनाकर लाती थी और हम सब साथ में खाते थे| मैंने किशोरियों के साथ मिल कर फोटो स्टोरी भी तैयार किया जिसमें मैंने दर्शाया कि कैसे लड़कियों के साथ जेंडर भेद-भाव होता है| किशोरियों से उनकी भेद-भाव से जुड़ी कहानियाँ जानने को मैं उत्सुक्त थी लेकिन कोई भी ऐसे किसी अंजान व्यक्ति के साथ अपनी ज़िदगी के निजी बातें इतनी आसानी से नहीं बताता|
किशोरियों के साथ और दोस्ती करने की ज़रूरत थी ताकि वे बेझिझक अपनी कहानियाँ मेरे साथ शेर करें| मैंने उनके साथ पहले एक मीटिंग रखी जिसमे हमने केवल रोज़मर्रा की जिंदगी की बात करी| यह मैंने फैट से सीखा है: जब हमे किसी की निजी ज़िंदगी और करीबी से जननी हो तो पहले खुद की जिंदगी की बातें बांटनी चाहिए| मैंने भी कुछ ऐसा ही किया| उन्हें पहले अपने घर की कहानी बताई की कैसे मेरे साथ भेद-भाव किया जाता था| धीरे-धीरे सभी लड़कियो से मुझे उनकी ज़िंदगी की कहानियों के बारे में पता चला|
अगले दिन मुझे उनकी बातें रेकॉर्ड करनी थी| मैंने उनसे अनुमति के लिए पूछा तो सभी तैयार हो गई| रिकॉर्डिंग करवाने से पहले हमने कुछ बातों पर ध्यान दिया जैसे हम किसी का असली नाम और घर का पता नही देंगे ताकि लड़कियो को कोई परेशानी ना हो| हमने सब की बातें रेकॉर्ड की और इसी तरह हमारी विडियो और मूवी तैयार हुई| एक छोटी सी फिल्म स्क्रीनिंग के जरिये हमने सभी सहरियर के सदस्यो को अपनी मूवी भी दिखाई| यह पहली बार था की दिल्ली से बाहर जाकर मैं अपने काम और लोगों तक पहुंचा रही थी| बहुत ही अच्छा और गर्व महसूस हुआ| आत्मविश्वास से भरा एहसास था| जहां पहले हम हर बात पर सवाल पूछते थे आज हम जवाब देने वाले बन गए थे! लोग अब मेरी बातों को ध्यानपूर्वक सुन रहे थे| इसका एक अलग ही एहसास था| खुद पर बहुत भरोसा हो रहा था|
एक और यादगार पल तब था जब मैं किशोरियों के साथ उनके स्कूल गई। सभी किशोरियाँ सरकारी स्कूल में पढ़ती है| उनके स्कूल में बाल दिवस के नाम से एक सम्मारोह आयोजित किया गया था| गुजरात के सरकारी स्कूल बहुत ही रचनात्मक हैं| किशोरियों ने कैमरा से जुड़ा चार्ट बनाया और अपने स्कूल के अध्याप्क को दिखाया जिसमें उन्होने नये और पुराने जमाने के कैमरो को चित्र व लिखित रूप में दर्शाया| सभी स्कूल के अध्यापकों ने मुझसे कहा कि वे भी चाहते हैं कि मैं कैमरा सिखाऊँ| उस समय ऐसा लगा जैसे मैं अब इस लायक बन गयी हूँ कि एक अपनी अलग सी पहचान बना सकूँ| बहुत ही यादगार पल था मेरे लिए|
कुछ अच्छे अनुभवों के साथ-साथ कुछ अलग अनुभव भी रहे, जहां मैं सोचने पर मजबूर हुई| मुझे महसूस हुआ की गुजरात थोड़ा रूढ़िवादी समाज है| चाहे कोई भी हो—बड़ा, छोटा, बच्चा या बूढ़ा—हर कोई दिल्ली की बात कर रहा था एक असुरक्षित शहर के रूप में, खासकर वडोदरा के मुक़ाबले जहां उस तरह की छेड़खानी नही होती| क्योंकि उनका मानना था कि यहाँ की लड़कियां बहुत ही अच्छे और सभ्य तरीके से रहती हैं| इस तरह के सामाजिक ढांचे में मेरे लिए थोड़ा मुश्किल था कि मैं क्या पहनु, कैसे बोलूँ| सभ्य होने के अलग अलग तरीके ढूंढने लगी| मन में यह बात भी उठी कि चाहे दिल्ली हो या वडोदरा, लड़कियो के प्रति लोगो के देखने का नज़रिया नही बदला है| सब जगह एक ही हालत है|
एक और घटना याद है: एक बार मुझे गजरा लगाने का मान हुआ तो मैंने अपने हॉस्टल की साथियों से कहा कि वे मुझे फूलों वाला गजरा ला कर दे| तो वे मुझे हैरानी से देखते हुए बोली कि यहाँ गजरा सिर्फ धंधेवाली (सेक्स वर्कर) लगाती है| अगर मैंने लगया तो मुझे भी वो ही समझा जाएगा और छेड़ा जाएगा| ऐसी बहुत सारी सोच ओर बातों का सामना मैंने वहाँ किया| मेरे साथ जो लड़कियाँ थी मेरे साथ काफी खुली ओर कई बातें शेर करी| मैंने उन्हे भी जेंडर और पित्रसत्ता के बारे में बतया| यौनिकता के विषय में भी बातें हुई| बहुत मज़ा आता था: रोज़ शाम हम ऐसे मुद्दों पर बातें करते थे| सब से अच्छी बात तो यह थी कि लड़कियाँ इन विषयों पर पहली बार खुल कर बात कर रही थी| इन सभी अनुभवों के साथ मैंने अपना गुजरात का सफर समाप्त किया|
It’s always nice to live away from home because family members usually cause some interruption or the other. Whether one is interested or not, one has to do all the work at home. A few days back, I went to Vadodara in Gujarat representing FAT there. I went there to teach photography and filmmaking to adolescent girls of an organization named Sahiyar. Sahiyar has been working for over 20 years now, especially on women’s rights. While this wasn’t my first experience of teaching or training—I had earlier been to a Delhi-based organization named Udhyam to teach computers to the adolescents there—I had never been outside the city of Delhi before. That is why this experience was special and interesting.
I was travelling alone in a train for the first time. And that too, so far away from Delhi: all the way to Gujarat. I was very thrilled but also deeply scared from inside. It wasn’t going to be easy—to teach adolescent girls of a far away and different city. I boarded the night train at 10 and reached Vadodara the next morning. It was an entirely new place and I was going to be alone there. As soon as I arrived, I took an auto and went to my hostel, a place where other working women from cities outside were staying. I met Khushboo there, the hostel in-charge who took care of all administration. After enquiring about my room and food, I got a tiffin service arranged for myself for the next 12 days.
Most of the dishes cooked in Gujarat have a sweet flavour and taste. Even the dal is slightly sweet. The first time I had their food, I felt everything tasted sweet. I had never eaten such sweet tasting dal and vegetables before. Since I wasn’t used to this kind of food preparation, I requested my tiffin aunty to please refrain from putting any sweet ingredients in her food preparation for me! I was sharing my room in the hostel with a few other girls. After talking to them for a while, I left to see the town. Since I had little knowledge about the city, I did not venture too far.
I had to begin taking classes in Sahiyar next day onwards. Earlier that night, I had worked on preparing the curriculum for what I was about to teach. I was making a curriculum for the first time in my life without anyone’s help. I faced several difficulties while drafting it; I couldn’t understand how I would make it in just two hours. Somehow, I drafted one and started preparing for the class. It took me three hours to make the curriculum and I took classes for a total of 12 days. It was a very different and amazing experience. Some of the girls there did not speak Hindi very well. I was wondering how would I communicate with them but in a few days, I picked up Gujarati language and could understand some parts of it. The local language was not that complicated. I had assumed in my mind that speaking and understanding Gujarati would be a very difficult task. Some of the words in Gujarati were the same as in Hindi.
Along with the classes, we also had a lot of fun! With the help of some interactive activities, I explained the concept of gender to the girls. Is sex and gender the same? Or are they different? How gender keeps us caught and restricted. Every day I went with a new thought and used the medium of photos to explain different socially relevant issues to the girls. I found this exercise to be extremely delightful. It made me recall the day when I myself entered the Tech Center in the role of a student and took the classes. I used to trouble everyone there. I was always ready to ask several questions. But each of my questions was met with patiently worded answers at FAT’s Tech Center. Whatever I learned there then, I taught here now.
My experience with the girls was quite exciting. The girls were very affable and accommodating. We became friends very soon. They used to get food for me from their homes and we all used to eat together. I also worked with the girls to create a photo story that illustrated gender discrimination faced by girls in a patriarchal society. I was eager to know the girls’ stories regarding their experience of experiencing discrimination but I knew that they wouldn’t share them immediately and easily with a stranger like me.
I needed to befriend the girls more closely so that they share their personal life stories with me without any hesitation or pressure. I held a meeting with them first in which we discussed stories about our everyday lives. This is something I have learned at FAT: when one needs to know more about someone’s life, one should share stories from one’s own life. I did something similar. I shared some of my own stories that were about the kind of discriminations I faced in my house. Gradually, I began to know more about the girls from their own stories.
The next day, I had to record the girls’ stories. I took their permission before doing so and they were all ready and on board. Before beginning the recording process, we discussed the issue of confidentiality and how important it was to maintain it—not revealing people’s names and complete addresses—so that no girl faces any trouble in the future. We recorded every girl’s story and made our own video story and movie out of it. We also organized a small film screening for the people at Sahiyar. I felt very happy and proud at that time. I was feeling confident and content with myself. Earlier, we were asking questions and today, we were answering people’s questions! People were now listening to my words with utmost attention. This realization was an entirely different feeling altogether. I began believing in myself a little more from then on.
Another memorable moment was when I accompanied the girls to their school. All the girls were studying in government schools. A special “baal divas” was being celebrated in their school wherein creative activities and fun-filled programs had been organized. I noted that the government schools in Gujarat were quite creative. The girls had made a chart on camera and they also showed it to their school teacher. They had made a collage of pictures as well as written about the cameras from the older and the new generation. All the teachers there also asked me to teach camera to them. At that moment, I felt like I had become a person of some worth; that I had now carved a different identity of my own. It was an unforgettable moment for me.
Along with some good experiences, there were also a few that were different and forced me to think deeply and critically. I felt that the society in Gujarat was slightly reserved and conservative. Whether it was a child or a grown up, everybody had a similar view about Delhi being an extremely unsafe city (especially for girls), in comparison to Vadodara where such unruly instances were rare. Because they believed that the girls there were “good” and polite. Faced with a society that believed in such thoughts, I did have a little difficulty regarding what to wear and what to speak but I also tried to hunt for ways in order to accommodate myself in that social structure. I also felt that whether it was Delhi or Gujarat, people’s attitudes towards women remained the same. Every place had a seemingly different but similar story.
Another instance comes to mind: once, I felt like wearing a garland of flowers on my head and I asked my roommates in the hostel to get me some. They stared at me in horror and told me that here, only sex workers wear flowers on their heads. If I do the same, everybody would think I am a sex worker and tease me. I faced several such rigid thoughts and beliefs during my stay there. However, the girls I stayed with also opened up and shared details about their thoughts and beliefs with me. I also told them about gender and patriarchy in great detail. We even spoke at length about sexuality. It was so much fun: every evening, we discussed some issue or the other. The best part was that the girls were opening up about these topics for the first time. With such experiences, I ended my journey to and from Gujarat.
Renu Arya is an alumnus from our Tech Center who has been associated with FAT for over three years now. After interning with us for a year, she is now working on a six-month fellowship on using theatre to talk about gender discrimination. She was recently in Gujarat teaching photography and filmmaking to the girls at Sahiyar: Stree Sangathan. To know more about FAT’s partnership with Sahiyar, click here. Renu is also an intern engaged in the early marriage project. To read more about the collective fight against early and forced marriage, click here.
Edited and translated by Deepa Ranganathan
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