लक्ष्मी की लाठी -Laxmi's Stick

सच पूछो तो ज्यादातर उसी की दवा हो रही थी। लेकिन गरीब-गुरबा बीमार हो जाए तो उसकी सुनवाई नहीं होती है।जिसके पास पैरवी हो वही सरकारी अस्पताल में दवाई करा सकता है। लेकिन जिसके पास पैरवी नहीं है उसका तो कोई सुनता नहीं है।  बस घंटों लाइन में लगे रहिए।

Anyone who has a recommendation (Pairvi) can get medicine from the government hospital and those who do not have it no one will listen to him, the person needs to wait in the queue for long hours.

हम किसी से कम नहीं-We are not less than Anyone

भाई का विरोध तो पिता का साथ, 17 साल की उम्र में बीमारी , तो कुछ ही सालों में M.Sc में एडमिशन, सरिता ने बहुत छोटी सी उम्र से ही छोटे बड़े बहुत से उतार चढ़ाव देखे, पर आज फैट से जुड़ने के बाद वह अपनी क्षमताओं को पहचानती है और सर उठाकर ज़िन्दगी जीती है, आइए पढ़ते है सरिता की कहानी।   

Brother's opposition to Sarita's choices to her father's support, from getting diagnosed with genetic disorder at the age of 17 to taking admission in M.Sc. Sarita has seen a lot of ups and downs at a very young age, but today after getting associated with FAT she has discovered her potential and walks with her head held high. Let us read Sarita's story.

 

 

कुछ लम्हे ऐसे भी-Some moments like this

कभी चेहरे का रंग, कभी जाती आड़े आती रही, कोई न कोई ताने मारता, पर वो कहते हैना "कुछ तो लोग कहेंगे लोगो का काम है कहना, यही मंत्र नीलम अपनाती रही और ज़िन्दगी में आगे कदम बढ़ाती रही"।  

Sometimes the skin color, sometimes her caste would be an obstacle, someone or the other would taunt her, but as we say " people will say something no matter what, it's their job to say something". She accepted this mantra and moved on in life without considering much about them. 

 

लॉकडाउन में सुधा - Sudha in Lockdown

लॉकडाउन ने भारत के दूरदराज के गांवों में रहने वाले परिवारों पर बहुत बोझ डाला, वायरस के बारे में भ्रम और आजीविका के नुकसान ने समाज के हर वर्ग को प्रभावित किया। आइए पढ़ते है पूनम की लिखी ये कहानी 

Lockdown posed great burden on families living in remote villages of India, confusions about the virus and loss of livelihoods effected every section of society. 

कोविड और मैं - COVID and I

लक्ष्मी की उम्र छोटी है पर उसकी सोच बहुत बड़ी है। बहुत हिम्मत के साथ वो कहती है के उससे लड़ना नहीं आता पर वे अपने हक़ की लड़ाई लड़ रही है, लॉकडाउन लक्ष्मी की ज़िन्दगी में कुछ खट्टी कुछ मीठी यादें दे गया। आइए जानते है कैसे

Laxmi's age is younger but her thinking is mature. She doesn't know how to fight but with great courage she is still fighting for her rights. Lockdown has given Laxmi a bundle of sour and sweet memories, let's know how.

उफ़, ये काले बादल! Oh, these black clouds

"एक तो लड़की ऊपर से काला रंग" यह भेदभाव के दो पड़ाव है जिन्हे सीमा ने बहुत छोटी उम्र से उसके दादाजी से सुना, पर उसने हिम्मत नहीं हारी, आज भी समाज में सावले रंग की महिला एवं बच्चिओं पर कड़वे कटाक्ष कसे जातें है, सीमा ने इन चीज़ों से बढ़कर अपनी अलग पहचान बनायीं।इस कहानी को लिखा है 18 वर्षीय एक और छोटी उम्र के बड़े सपनों वाली ख़ुशी ने झारखण्ड के गिरिडीह से ।

 

“One its a girl and that too of dark complexion” these are two stages of discrimination which Seema has been hearing since her early childhood but she never gave up, even today women and girls are often being mocked or looked down upon due to dark complexion /color discrimination. Seema worked hard to make her own identity overcoming these forms of discrimination.

This story has been written by another girl Khushi (18) from Giridih, Jharkhand who dreams big in a young age.


 


 

साइकिल की सवारी Riding a bicycle

यह कहानी 18 वर्षीया पुनिता ने खुद अपने निजी अनुभवों पर लिखी हैं , इस ब्लॉग में वह बता रही है के 4 साल की उम्र में उसके एक पैर में तकलीफ हुई और उससे चलने में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है, फिर भी वह भागना चाहती
साइकिल चलाना चाहती है।

This story has been written by 18-year-old Punita herself based on her personal experiences. In this blog she is sharing that at the age of 4 she has had a problem in her one leg and since then she faces difficulties in walking, yet wants to run & ride a bicycle.

कभी न रुकी, कभी न थकी -पूनम Neither she stopped nor got tired

न थकी न रुकी, हर परिस्तिथि में पूनम ने अपना हौसला कम नहीं होने दिया, चाहे घरवालों की बातें हो या पड़ोसियों के ताने हो। वह लगातार काम करती रही, लॉक डाउन में भी घर की सारी ज़िम्मेदारी अपने कंधो पर लेकर चली पूनम।

Poonam neither stopped nor got tired. Poonam did not let her spirits down even in any situation, despite being taunted her family & neighbors. She continued to work, carried all the responsibility of the house on her shoulders even  during the lockdown.

एक सही कदम - A Right Step

यह कहानी है साहसी माया की जिसने बदलते हालात में भी अपने साहस का साथ नहीं छोड़ा, अपनी आत्मसम्मान से जीने का निश्चय किया। 

Its a story of Maya, who did not give up in unprecedented situations, she loved teaching and pursued her interest even after marriage. She had been stern with her courage.

मासूम निगाहे उड़ाना चाहे

Its a Story of Reema and many other young girls who are struggling with the impact of digital divide caused by COVID-19 to continue her education".

यह कहानी रीमा जैसी कई लड़कीओ की है जो पहले से पढ़ाई पूरी करने के लिए संघर्ष कर रही थी परन्तु COVID-19 ने उन्हें टेक्नोलॉजी के अधीन कर दिया है , जिन लड़कीओ के पास स्मार्ट फ़ोन नहीं है या घर पर एक्स्ट्रा स्मार्ट फ़ोन नहीं है वह अपनी पढ़ाई पूरी करने में चुनौतियों का सामना कर रही है।


 

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